पुलकित तन को आनंदित करते “स्पंदन प्रेम के”

स्पंदन प्रेम के : नाम के साथ प्यारा सा रिश्ता जोड़ती है हर प्रस्तुति

पुलकित तन को आनंदित करते “स्पंदन प्रेम के”… शब्दों की सुन्दरता हो या भावों का पैनापन दोनों ही मापदंडों में प्रेम बजाज जी का यह एकल काव्य संग्रह एकदम खरा सिद्ध होता है l पढ़ें लखनऊ से राजेश मेहरोत्रा “राज़” की कलम से…

श्रीमती प्रेम बजाज का नाम का नाम आज किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है l बहुत कम रचनाकार इस तरह के होते हैं जो किसी भी तरह का लेखन हो वो उसमे अपनी एक अलग छाप छोड़ देते हैं किन्तु यह प्रेम जी का लेखन है जो पाठकों के सिर चढ़कर बोलता है l आज उनकी लेखनी स्वयं से अपनी सशक्त पहचान बनाती जा रही है l उनके बेजोड़ लेखन का ही कमाल है कि आज पाठक उनके लेखन में अपने अथाह भावों को देख पाता है l कहते हैं जब लेखक की लेखनी और पाठक के भाव एकरूप हो जाएँ तो लिखने वाले का लिखना सार्थक हो जाता है l

श्रीमती प्रेम बजाज जी का नया एकल काव्य संग्रह ‘स्पंदन प्रेम के’ एक ऐसा काव्य संग्रह है जिसमे प्रेम की एक नयी परिभाषा को परिभाषित किया गया है l जैसे-जैसे हम इस संग्रह की रचनाओं को पढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे प्रेम के एक नए रूप को समझते जाते हैं और फिर अंत में प्रेम के उस भाव को छू पाते हैं जिस भाव को आज तक हम महसूस भी नहीं कर सके थे l अत: यह कहना अतिश्योक्ति न होगा की श्रीमती प्रेम बजाज जी की लेखनी का ही कमाल है की इस संग्रह के माध्याम से प्रेम स्वयं प्रेम को नए रूप में परिभाषित कर रहा है l

अपने नाम की पहचान को सशक्त बनाने के क्रम में उनका अगला कदम है उनका अगला एकल काव्य संग्रह “स्पंदन प्रेम के” l प्रेम को समर्पित पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है श्रीमती प्रेम बजाज जी का एकल काव्य संग्रह “स्पंदन प्रेम के” l कभी अथाह प्रेम तो कभी प्रेम के दर्द कभी मिलन की आस तो कभी प्रेम की प्यास का एहसास कराता हैं उनका यह बेजोड़ एकल काव्य संग्रह ‘स्पंदन प्रेम के’ l

इस एकल काव्य संग्रह की पहली कड़ी में जो प्रस्तुति सजायी गयी है वो है “आ तुझपे मोहब्बत लुटाऊं मैं” यह पहली प्रस्तुति ही पूरी तरह से प्रेम को समर्पित हैं l जिसमें श्रीमती बजाज जी ने बताया है की प्रेम का मतलब ही है एक-दूसरे में रहना l प्रेम भक्ति को अपने शब्दों के माध्याम से प्रेम जी जी ने इसे बेहतरीन सजाया है l जब प्रेमिका-प्रेमी में पूरी तरह से समा जाती है वही सही मायनों में प्रेम की सम्पूर्णता है, उक्त भाव पर आधारित है प्रेम जी की यह प्रथम प्रस्तुति l

‘क्यों इश्क जगा के छोड़ दिया” नामक द्वितीय प्रस्तुति में प्रेम जी ने विरह का बेजोड़ वर्णन किया है और समझाया है विरह भी प्रेम का ही दूसरा अभिन्न अंग है l इसमें जलना, इसमें रिसना और इसमें जीना भी एक अलग ही अनुभूति देता है जिसका अहसास ही प्रेम है l उक्त प्रस्तुति में धीरे-धीरे आगे बढ़ती है इनकी प्रस्तुति और अपनी बात को न सिर्फ तर्क के साथ लेकर चलती है बल्कि उसे पूरा भी करती है l सिर्फ अपनी बात को कह देना प्रेम जी के कलम की आदत नहीं बल्कि उसका तर्क लेकर उसको विस्तार से समझाना भी श्रीमती प्रेम बजाज जी की कलम की विशेष खासियत है l

‘तेरी दीवानी” नामक प्रस्तुति में प्रेमिका मन के अथाह भाव वो मात्र इस प्रस्तुति में उड़ेल देती हैं l “हाथो से जो बनाये हैं हमने दिलों के निशां’ पंक्ति में प्रेम से उपजे मन की बात को बहुत ही सुन्दर ढंग से व्यक्त कर देती हैं वो l प्रस्तुत पंक्तियों में प्रेमिका मन की सम्पूर्ण समपर्णता को देखा जा सकता है l लेखिका के अनुसार किसी के प्रति प्रेम किसी के प्रति सम्पूर्ण समर्पण ही है l अपनी सीधी सच्ची बात को सीधे सच्चे तरीके से बताना ही इनकी लेखनी का अद्दभुत कमाल है l सरल और सुलझे शब्दों से अपनी बात को कह जाना ही श्रीमती प्रेम बजाज जी की लेखनी की विशेषता है और यही विशेषता उनको अन्य रचनाकारों से विशेष और ऊँचे स्थान पर सुशोभित करती है l



“फिर से याद आई तेरी” यह प्रस्तुति है तो छोटी किन्तु इसके भाव बहुत ही गहरे हैं l प्रेमरस में डूबी इनकी इस प्रस्तुति में मन का मयूर प्रेम के एक नए आसमान में उड़ने की चाह दिखाता प्रतीत होता है l ”तेरी बेवफाई ने इस क़दर मुझे दिल-ए- दर्द दिया’ उक्त पंक्ति के माध्याम से ही प्रेम में पाए दर्द को आसानी से समझा जा सकता है l इस पंक्ति को पढ़कर निसंदेह कहा जा सकता है ‘देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर’ l



“इश्क की तलब” उक्त प्रस्तुति में लेखिका कहती है “इश्क की तलब जितनी है मुझे, तुझे भी कुछ कम नहीं…उनका कहने का मतलब साफ़ दिखता है की प्रेम कभी एक तरफ़ा नहीं होता बल्कि इसमें दोनों ही तरफ एक जैसी स्थिति होती है l दोनों ही दिल तड़पते हैं और दोनों ही दिल प्रेम की बारिश में एक साथ नहाते हैं l भीतर टूटते मन और प्रेम की मर्यादा के अंतर्द्वंद से जूझते हुए कवि किस तरह अपने को असहाय सा प्रतीत करता है इसका एक उदाहरण इस कविता के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है l



“कौन है तेरी आँखों में” प्रस्तुति में प्रेम जी ने प्रेमिका के मन की चंचल दशा का सुन्दर वर्णन किया है l प्रेम की आग में प्रेमिका की क्या दशा होती है पढ़कर उक्त प्रस्तुति से समझा जा सकता है l श्रृंगार रस का सुन्दर चित्रण इनकी प्रस्तुति में प्रयुक्त शब्दों से महसूस किया जा सकता है l प्रेमी से मिलन की आस लिए वो प्रेमी मन में किस स्थिति का सामना करती है इसका विस्तार से वर्णन किया है प्रेम जी ने l “पी जाये तू मुझे क़तरा-क़तरा बिखर जाऊं तेरी राहो में” पंक्तियों में प्रेमिका के अंतर्मन की प्रेम व्यथा को शब्दों के माध्यम से इतना सुन्दर रूप दिया है की पढ़ते समय यह रचना मात्र रचना न होकर एक चलचित्र सा प्रतीत होता है l जिसको पढ़ने वाला पाठक स्वयं पाठक न होकर स्वयं को प्रेमी के रूप में महसूस करता है l



श्रीमती प्रेम बजाज जी के इस एकल काव्य संग्रह “स्पंदन प्रेम के” के लिए कहने को तो बहुत कुछ है किन्तु एक समीक्षक होने के कारण मैं चाहूँगा की इस एकल काव्य संग्रह को पाठक स्वयं ही पढ़कर प्रेम जी की लेखनी को जाने और समझें l आप देखेंगे कि संग्रह पढ़ने पर प्रेम जी की हर प्रस्तुति पहले से अधिक सार्थक और उससे कहीं अधिक सशक्त प्रतीत होती है साथ ही साथ इनकी हर प्रस्तुति पाठक मन पर अपनी एक अलग ही पकड़ बनाती जाती है, और यह वो पकड़ है जिसके माध्यम से पाठक अगली प्रस्तुति पढ़ने के प्रति अपना उत्साह बनाये रखता है l



शब्दों की सुन्दरता हो या भावों का पैनापन दोनों ही मापदंडों में प्रेम बजाज जी का यह एकल काव्य संग्रह एकदम खरा सिद्ध होता है l जैसा की इस एकल संग्रह के नाम में ही इस संग्रह में शामिल समस्त प्रस्तुतियों की सार्थकता है l मानों इस संग्रह की हर प्रस्तुति इसके नाम के साथ अपना प्यारा सा रिश्ता जोड़ती प्रतीत होती है l



अंत में मैं “राजेश मेहरोत्रा “राज़” आप सभी सुधि पाठक गणों से निवेदन करता हूँ कि ‘यंग राइटर्स’ द्वारा प्रकाशित , श्री नवीन श्रीवास्तव जी द्वारा संपादित एवं श्रीमती प्रेम बजाज जी द्वारा लिखित इस एकल काव्य संग्रह “स्पंदन प्रेम के” को जरूर पढ़ें क्योंकि इसमें न सिर्फ प्रेम का खजाना है बल्कि प्रेम की नयी भाषा को परिभाषित करता एक बहुत ही सुन्दर एकल काव्य संग्रह है l मैं इस एकल संग्रह “स्पंदन प्रेम के” को अपनी विशेष शुभकामनाएं देता हूँ और इसकी प्रसिद्धि की कामना करता हूँ साथ ही साथ इसकी लेखिका श्रीमती प्रेम बजाज जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ l



आशा है आप सब भी इस एकल संग्रह को जरूर पढ़ेंगे और श्रीमती प्रेम बजाज जी के लेखन द्वारा सजाये प्रेम के एक नए रूप को देख सकेंगे और देख सकेंगे की किस तरह एक प्रेम ने दूसरे प्रेम को सुन्दर शब्दों से परिभाषित किया है l

एकल काव्य संग्रह: स्पंदन प्रेम के
रचनाकार: श्रीमती प्रेम बजाज
प्रकाशक: यंग राइटर्स
संपादक: श्री नवीन श्रीवास्तव
समीक्षक: राजेश मेहरोत्रा ‘राज़’


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पुलकित तन को आनंदित करते "स्पंदन प्रेम के"... शब्दों की सुन्दरता हो या भावों का पैनापन दोनों ही मापदंडों में प्रेम बजाज जी का यह एकल काव्य संग्रह एकदम खरा सिद्ध होता है l पढ़ें लखनऊ से राजेश मेहरोत्रा “राज़” की कलम से...

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