असमय बरसात, भविष्य की चेतावनी

ओम प्रकाश उनियाल

उत्तराखंड में हाल ही में हुई दो दिन की लगातार बारिश ने जो तबाही मचायी वह 2013 की केदारनाथ आपदा की पुनरावृत्ति की एक झलक थी। तब जून माह में और अब अक्टूबर माह में अचानक असमय मूसलाधार बरसात का होना कहीं भविष्य के लिए चेतावनी तो नहीं? केदारनाथ आपदा से हमने कोई सबक ही नहीं लिया।

समय बीतता रहा और हम निश्चिंत होकर प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर फिर से तुल गए। हिमालय के मध्य क्षेत्र में इस प्रकार की असमय जल-प्रलय का होना मौसम वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा सकता है। दो दिन तक लगातार हुयी बारिश से इस बार उतनी तबाही तो नहीं हुई जितनी केदारनाथ में हुई थी। इस बार नैनीताल जिले में यह कहर बरपा तो वहां की नदियां उफनती हुई आगे बढ़ती गयी और जो उनकी राह में बाधा आयी उसे अपने आगोश में समाते हुए आगे बढ़ गयी।

इस हालत में जो बाहरी पर्यटक पहाड़ सैर-सपाटे के लिए आए थे उनके मन में भय तो अवश्य बैठा होगा। लेकिन इसे पहाड़ों का दुर्भाग्य ही कहें कि जिन पहाड़ों से हमें शुद्ध वायु, स्वच्छ जल मिलता है व मन को सुकून देने वाले नयनाभिराम व मनोहारी दृश्यों को निहारने का अवसर मिलता है उन्हें ही कुरेद-कुरेद कर खोखला करने की प्रवृत्ति हमने नहीं छोड़ी। किसी न किसी प्रकार से पहाड़ों का वास्तविक सौन्दर्य मिटाने पर हम इस कदर तुले हुए हैं कि जैसे उनसे कोई सरोकार ही न हो।

यही नहीं हिमालय की ऊंची-ऊंची बर्फीली चोटियों पर भी अपना अधिकार जमा बैठे हैं। आखिर ऐसे में हिमालयी क्षेत्र के वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। फिर दोषी प्रकृति को ठहराया जाता है।  माना प्रकृति भी अपना स्वरूप बदलती है लेकिन उसको बिगाड़ने व कुरुप बनाने में मानव का ही तो हाथ होता है। जैसाकि, नदियों की राह जगह-जगह रोके जाने से एवं उनको संकरा करने से उनका रौद्र रूप ही तो देखने को मिलेगा। मानसून में तो हर साल पहाड़ से लेकर तराई तक जो भी हर प्रकार की हानि होती है उसका आंकलन करना बहुत मुश्किल होता है। मगर बेमौसमी बरसात का कहर और भी दुखदायी और कष्टकारी होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights