माहौल बिगाड़ती है ऊल-जलूल बयानबाजी

ओम प्रकाश उनियाल

बिना सोचे-समझे अनर्गल व ऊल-जलूल टिप्पणी या बयानबाजी करना टिप्पणीकर्त्ता पर ही भारी पड़ जाती है। इसे उसकी छवि धूमिल होती है एवं उसकी सोच का पता चलता है। यहां तक कि अनेक प्रकार के विरोध भी झेलने पड़तेे हैं। दंगे-फसाद घटने तक की नौबत बन जाती है। पूरा माहौल बिगड़ता है।

भारत के संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि जो मन में आया वह उगल दिया। इसका असर कहां क्या पड़ेगा कम से कम इस बात का तो ध्यान रखना ही चाहिए।

अपने आप को ‘फायर ब्रांड’ नेता दर्शाने व चर्चाओं में रहने के लिए कुछ नेतागण किसी भी विषय पर अनाप-सनाप टिप्पणी कर देते हैं। ऐसा करके वे यह जताने का प्रयास करते हैं कि वे धाकड़ व दबंग हैं। खासतौर पर जब किसी धर्म व संस्कृति पर आपत्तिजनक टिप्पणी की जाती है तो वह गंभीर विषय बन जाता है।

भारत वह देश है जो हमेशा शांति बनाए रखने का संदेश देता है। यहां हर नागरिक को हर प्रकार की स्वतंत्रता है। संविधान ने सबको बराबर अधिकार दिया है। लेकिन जब-जब भी भड़काऊ या अनावश्यक बयानबाजी किसी के द्वारा की जाती है तब-तब विरोधस्वरुप सांप्रदायिकता का नंगा नाच होता है। किसी प्रकार का विरोध करने वालों को भी सोचना चाहिए, सूझबूझ दिखानी चाहिए कि भावावेश न होकर शांतिपूर्ण ढंग से विरोध किया जाए।

विरोध करने का मतलब केवल अफवाएं फैलाना, दंगे भड़काना, तोड़-फोड़ करना, आगजनी करना ही समझा जाता है। यह बहुत बड़ी गलतफहमी है। इससे राजनीति करने वाले राजनैतिक रोटियां सेंकते हैं और असमाजिक-तत्वों को मनमानी करने की खुली छूट मिलती है। किसी को न कानून का भय है न समाज का।

आखिर क्यों इतना आपा खो बैठते हैं लोग? गलत बोलने एवं उसका विरोध गलत तरीके से करने की तो आदत-सी बना डाली है सबने। जिसे सुधारने की सख्त आवश्यकता है। सवाल यह है कि आखिर सुधाारेगा कौन?


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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ओम प्रकाश उनियाल

लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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