गीत : गाँव के रंग में

सिद्धार्थ गोरखपुरी

रंग लो खुद को गाँव के रंग में
तन – मन गाँव में ढाल के
जीवन अनुभव की खान है ये
हैं गाँव के लोग कमाल के
रंग लो खुद को गाँव के रंग में
तन – मन गाँव में ढाल के

बुजुर्गों का तन – मन देखो
जा बैठो संग खाट पे
प्रेम, दुलार देख लो उनका
और जानो मायने डांट के
असल मायने क्या है जानो
उनके हर एक सवाल के
रंग लो खुद को गाँव के रंग में
तन – मन गाँव में ढाल के

जबसे गाँव तुम छोड़ गए हो
दादी गुमसुम सी रहतीं हैं
शहरी हो गया मेरा लाडला
गाँव में सबसे कहतीं हैं
फूले – फले और आगे बढ़े
हो ऊँची किस्मत मेरे लाल के
रंग लो खुद को गाँव के रंग में
तन – मन गाँव में ढाल के

गाँव भस्मा में अब आ जाओ
छोड़ के सारी दुनियादारी
अबके बार क्या आएगा वो ?
पूछती है सारी पटीदारी
रूप रंग अब बदल चुके हैं
खदरा और आमी ताल के
रंग लो खुद को गाँव के रंग में
तन – मन गाँव में ढाल के

आमी ताल में जाते थे तुम
गेहूँ की गठरी लाते थे
थोड़े काम में थक जाते थे
सुबह दुपहरी लाते थे
बेचने को गेहूँ मिलता था
उसी गठरी से निकाल के
रंग लो खुद को गाँव के रंग में
तन – मन गाँव में ढाल के

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