समाज के ठेकेदार
प्रेम बजाज
क्या धर्म के ठेकेदारों को कोई धर्म सिखाएगा? बेशक आज नारी को बराबरी का हक है, पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। आज की नारी आत्मनिर्भर भी हो गई है, लेकिन केवल आर्थिक निर्भरता से ही नारी सशक्तिकरण सम्भव नहीं।
सशक्तिकरण अर्थात मानसिक, शारीरिक एवं इच्छा शक्ति इत्यादि शक्तियों पर विजय पाने का नाम है। आज देश में 50% से अधिक महिलाएं आत्मनिर्भर होते हुए भी प्रताड़ित है।
कारण – आज के समाज के ठेकेदार हमारे धर्म गुरु।
धर्म गुरु का अर्थ क्या है?
क्या आज के धर्म गुरु इस नाम की कसौटी पर खरे उतर रहे हैं। समाज के ठेकेदार, ( धर्म गुरु) आज देश ही नहीं संसार में ऐसे-ऐसे धर्म गुरु हैं जिनकी एक आवाज पर लोग अपना सर्वस्व लुटाने को तत्पर रहते हैं और इसी का फायदा उठाते हुए धर्म के ठेकेदार उनका सर्वस्व अर्थात तन, मन, और धन लूट लेते हैं।
उस पर स्त्री की पवित्रता केवल योनि शुचिता ही माना जाता है। जिसका लाभ पुरुष समाज हर पल उठाने को आतुर रहता है। अगर कोई स्त्री किसी तरह से विरोध करें तो उसे प्रताड़ित करने का जरिया रेप, जिसमें सबसे ज्यादा लिप्त समाज के ठेकेदार अर्थात उच्च पदों पर आसीन जिनमें धर्म गुरु सबसे आगे हैं, जो धर्म की आढ़ में अपना मकसद पूरा करते है।
क्या पुरुष पवित्रता का कोई मापदंड नहीं, स्त्री भी पुरुष से पवित्रता का मापदंड चाहती है, उसका क्या??
असमुल हरपलानी, जिन पर हत्या, बलात्कार, एवं जमीन हड़पने के अनेको केस हैं, लंडन के ईसाई धर्म के गुरु डगलस गुडमैन, एवं चन्द्र मोहन जैन जो फ्री सेक्स की नसीहत देने वाले, ऐसे अनेक धर्म के ठेकेदार हैं, जो जेलों में हैं या जेल से होकर आए।
चंद्रास्वामी जो अनेक राजनीतिज्ञों एवं क्रिमिनल्स के धर्म गुरु माने जाते हैं, जिन्हें फ्राड एवं राजीव गांधी की हत्या के आरोप में जेल भी हुई। राम रहीम जो लड़कियों के साथ यौन उत्पीडन और गबन के केस में जेल गए, गुलज़ार अहमद नाबालिग लड़कियों के रेप और छेड़छाड़ के आरोपी में जेल गए।
संत रामपाल जो सिंचाई विभाग में एक जेई( जुनियर इंजिनियर) के पद पर कार्यरत थे, जिन्होंने संत पंथ अपनाने के लिए नौकरी से इस्तीफा दे दिया। भोली-भाली जनता को बेवकूफ बनाना जिनका काम है, ऐसे धर्म के ठेकेदार जनता को क्या धर्म की शिक्षा देंगे?
धर्म का अर्थ है जो सबको धारण किए हो अर्थात धारयति-इति धर्म:!, धारण करने योग्य मूल्य,अर्थात जो सबको संभालता है, जहां किसी से वैमनस्य दुर्भावना का प्रश्न ही नहीं। धर्म और संप्रदाय में अन्तर होता है। संप्रदाय धर्म की शाखा है।
नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है, जो स्वयं नैतिक मूल्यों का आचरण नहीं करते वो आम लोगों को क्या नैतिक मूल्य समझाएंगे?
आज के धर्म गुरु धर्म के नाम पर मनुष्य को ठग रहे हैं, जहां देखो स्त्रियों को ही लाज, धर्म, संस्कार, संस्कृति का पाठ पढ़ाया जाता है।
लोक-परलोक संवारने के नाम पर, बीज मंत्र के बहाने स्त्रियों को अकेले ही क्यों बुलाया जाता है? लोक- परलोक संवारना है तो पुरूषों के साथ भी संवारा जा सकता है, फिर अकेले में क्यों अपनी भव्यता दिखाने के बहाने भोली-भाली जनता को बहकाया जाता है।
धर्म गुरु जब स्वयं ही स्त्री का शोषण करेंगे तो अन्य पुरुषों को क्या शिक्षा देंगे, उन्हें तो वही पुरुष संगत ही चाहिए जो उनके कुकर्मों में उनके साथी बनें। भोले -भाले पुरुषों को अपने विश्वास में लेकर उनका सर्वस्व ले लेना।
कहते हैं पति परमेश्वर होता है, तो धर्म गुरु उस परमेश्वर को छोड़कर अपने पैर धुलवाने में क्यों लगे हैं, घर मन्दिर है तो मन्दिर जाकर ही हर समय पूजा-पाठ, कीर्तन , सत्संग में लगे रहना कोई भगवान् नहीं कहता।
मेरा आशय ये नहीं कि मन्दिर ना जाया जाए, मगर घर-बार सब छोड़कर हर समय मन्दिरों में बाबाओं के चरण पूजना कहां किस ग्रंथ में लिखा है। ये केवल एक – दूसरे से आगे निकलने की होड़ है, कि सबसे ज्यादा किसके अनुयायी हैं, कौन सबसे बड़ा संत, किसके सबसे अधिक समर्थक हैं, किसका प्रभुत्व अधिक है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »प्रेम बजाजलेखिका एवं कवयित्रीAddress »जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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