लघुकथा : जीवंत गजल

लघुकथा : जीवंत गजल, रविवार की शाम को दोनों जन खचाखच भरे हाल में जा कर बैठ गए। दो-तीन गजल गा कर माहौल बनाने की कोशिश कोई की गई। जिन्हें गजल का बहुत शौक था, नोएडा से वीरेंद्र बहादुर सिंह की कलम से…

हाथ में लिए गजल संध्या का आमंत्रण कार्ड पढ़ कर बगल में रखते हुए अनुज ने पत्नी से कहा, “तुम्हें पता है, गजल सुनी नहीं, अनुभव की जाती है।” श्वेता ने एक फिर वह आमंत्रण कार्ड अनुज के हाथ में रखते हुए कहा, “गजल न मुझे सुननी ही है और न अनुभव ही करनी है। मुझे तो बस तुम्हारे साथ चलना है। अब यह बताओ कि तुम चलोगे या नहीं?”

दोनों विवाह के सात साल पहले एक-दूसरे के प्यार में पड़े थे और तब से अब तक दोनों के बीच एक भी काॅमन हाॅबी या इच्छा नहीं रही थी, पर प्यार इतना अधिक था कि शिकायतों के बीच से रास्ता निकाल कर आगे बढ़ते रहे। दोनों को एक-दूसरे को समय देने में हमेशा परिस्थितियां और काम के प्रति प्राथमिकता बीच में आती रही। दोनों एक-दूसरे पर गुस्सा जरूर होते, पर प्यार की वेलिडिटी इतनी अधिक थी कि कुछ भी आड़े नहीं आता था।

पिछले एक साल से दोनों की ड्यूटी अलग-अलग शिफ्ट में थी यानी एक घर आता था तो दूसरा ड्यूटी पर जाता था। रोजाना घर के फ्रिज पर रखी चिट्ठी में लिखे जाने वाले मैसेज के नीचे बनाया जाने वाला दिल का निशान ही उनका प्यार था। केवल रविवार को ही दोनों एक साथ होते थे। अब इस परिस्थिति में सप्ताह भर बाद मिलने वाले रविवार को किसी गायक को सुनने में बिताना अनुज को बहुत मुश्किल लग रहा था। पर प्यार की एक अलिखित शर्त होती है कि कोई भी खुद की अपेक्षा सामने वाले व्यक्ति की इच्छा को समझ सकता है।

रविवार की शाम को दोनों जन खचाखच भरे हाल में जा कर बैठ गए। दो-तीन गजल गा कर माहौल बनाने की कोशिश कोई की गई। जिन्हें गजल का बहुत शौक था, उन लोगों के लिए तो कानों का जलसा शुरू हो गया था। पर अनुज के लिए सहन न हो, इस तरह का अनुभव था। दो-चार बार मोबाइल निकाल कर फेसबुक चेक करने का मन हुआ। पर वह बगल में बैठी पत्नी का मजा खराब नहीं करना चाहता था, इसलिए शांति से बैठा रहा।

समझदार पत्नी को पता था कि वह उसी की वजह से यहां बैठा है। इसलिए धीरे से उसने उसके कान में कहा, “अगर तुम्हें मजा न आ रहा हो, तो बाहर जा कर घूम आओ।” अनुज तो यही चाहता था। वह हाल से निकल कर बाहर गैलरी में आ गया। दिसंबर की ठंड में वह सिगरेट निकाल कर सुलगाने जा रहा था कि उसकी नजर किसी पर पड़ी। उसने मोबाइल निकाल कर पत्नी को मैसेज किया, ‘गजल देखनी हो तो बाहर आ जाओ।’

बाहर आ कर श्वेता ने सवालिया नजरों से अनुज की ओर देखा। अनुज ने सामने फुटपाथ पर इशारा किया। एक झोपड़ी के बाहर अलाव जल रहा था। अलाव के पास फटी गुदड़ी ओढ़े पति-पत्नी बैठे एक ही कटोरे में चाय पी रहे थे। दोनों बिना कुछ कहे इस जीवंत गजल को देखते रहे।

हास्य व्यंग्य : सांपनाथ और नागनाथ


👉 देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है। अपने शब्दों में देवभूमि समाचार से संबंधित अपनी टिप्पणी दें एवं 1, 2, 3, 4, 5 स्टार से रैंकिंग करें।

लघुकथा : जीवंत गजल, रविवार की शाम को दोनों जन खचाखच भरे हाल में जा कर बैठ गए। दो-तीन गजल गा कर माहौल बनाने की कोशिश कोई की गई। जिन्हें गजल का बहुत शौक था, नोएडा से वीरेंद्र बहादुर सिंह की कलम से...

कविता : मैंने प्यार किया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights