लघुकथा : घर घर की कहानी

वीरेंद्र बहादुर सिंह

“अरे यार राकेश, कुछ कर न। अब इस औरत का शोषण सहन नहीं हो रहा है।”
“भाई शादी एक ऐसा लड्डू है, जो खाए, वह भी पछताए और जो न खाए, वह भी पछताए। राजू भाई शादी के पहले मैं ने तुझ से कहा था न कि क्यों बेकार में फंस रहा है। पर तुझे तो लड्डू खा कर पछताना था। जो किया है, अब भोगना तो पड़ेगा ही।” राकेश ने सेखी बघारते हुए आगे कहा, “भई अपनी औरत तो मैं जितना कहता हूं, उतना ही करती है।”
“इस तरह का कोई नुस्खा हो तो मुझे भी बता न भाई। रोजरोज की कीचकिच अब सही नहीं जाती।”
“कुछ नहीं करना भाई। सीधा और सिम्पल सा काम करना है।”
“क्या?” वहां बोठे सभी लोग एक साथ बोल उठे।
“पत्नी की हर बात में हां में हां करते रहो। वह भी खुश और हम भी खुश।” राकेश ने कहा।
“अरे भाई तुम यह क्या कह रहे हो? तुम होश में तो हो न। औरतों के नखरे उठाना आसान है क्या? इसके लिए बहुत हिम्मत और सहनशक्ति चाहिए। कल को मेरी घर वाली या तुम्हारी घर वाली… आफिस में वह कुर्सी पर बैठी रहेगी और हमें घर का सारा काम करना होगा। अब उसे कौन समझाएगा कि कुर्सी में बैठना आसान है क्या?” महेश ने अपने दुख की पोटली खोलते हुए कहा।
“मुझे तो रोजाना हमेशा एक ही वाक्य सहन करना पड़ता है…’ये तो मैं हूं, ठीक है। कोई दूसरी होती तो पता चल जाता। पर यह दूसरी है कौन? मेरी तो यही समझ में नहीं आता।” रघुवीर ने कहा।
“रघुधीर काका, मुझे तो इससे भी आगे सुनना पड़ता है। खुद ही खुद का बखान करते हुए मुझे सुनाती है कि ‘यह तो ठीक है कि मैं तुम्हें सहन कर रही हूं। बाकी कोई दूसरी होती तो तुम्हारे साथ ब्याह न करती। मेरा भाग्य फूटा था, जो तुम्हारे पल्ले पड़ गई। अब जो भाग्य में लिखा है, वह तो भोगना ही पड़ेगा।’ अब यह कौन कहे कि कौन किसे सहन कर रहा है मैं या वो।”
“अरे भाई यह वाक्य तो हर घर में सुनने को मिलता है। ‘मैं तुम्हें सहन कर रही हूं।’ हकीकत में कौन किसे सहन कर रहा है, यह तो वही जानता है, जिसके पैर में ठोकर लगी हो।” प्रेम ने यह बात बड़े प्रेम से कही। सभी के चेहरे पर चिंता थी। कौन पीड़ित और कौन किसे सहन कर रहा है, आज तक किसी को पता नहीं चला। कोने में खड़ा राकेश मन ही मन बड़बड़ाया, “यह मुझसे अधिक कौन जानेगा। हाथी के खाने के और दिखाने के दांत अलग-अलग होते हैं।” यह बात तो किसी ने नहीं सुनी। पर इसी के साथ एक आवाज सभी को सुनाई दी, “अरे मैं कुछ कह रही हूं, सुनाई दे रहा है न? तुम्हारा यह लाडला हाथ में आइस्क्रीम लिए पूरे शरीर में चपोड़ रहा है। अगर गप्पे मारने से फुरसत मिल गई हो तो जरा इसे देख लो।”
“अरे आया।” कहते हुए राकेश हवा की गति से घर की ओर भागा।
राकेश की तेजी देख कर सभी समझ गए कि घर घर की यही कहानी है। रोजरोज की किचकिच से अच्छा है कि राकेश का नुस्खा अपना कर खुश रहो। सभी एक-दूसरे की ओर देख कर मुसकराते हुए अपनेअपने घर की ओर चल दिए।

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