लघुकथा : मंत्रिमंडल का विस्तार

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुख्यमंत्री जी बड़े बेचैन होकर अपने केबिन में टहल रहे थे । ए.सी. चालू थी, फिर भी माथे से पसीना टपक रहा था । दीवार पर टंगी टीवी बंद करके एक गिलास पानी एक सांस में गटककर अपने निजी सहायक को बुलाने हेतु बैल बजा दी।

पलक झपकते ही सहायक सेवा में हाजिर हो गया –
‘बताइए सर’…

‘टीवी पर जनता बहुत आक्रोश दिखा रही है, महंगाई -महंगाई चिल्ला रही है । जनता को हमारा विकास ही नजर नहीं आ रहा । अरे ! कल तक हमारे जो विधायक- सांसद हफ्ता वसूली करके घर चलाते थे वे आजकल रोज नये-नये पेट्रोल पंप, कोल्ड स्टोर, विदेशी गाड़ियां, फार्म हाउस न जाने क्या- क्या खरीद रहे हैं और जनता को हमारा विकास ही नहीं दिख रहा ।’
मुख्यमंत्री जी एक सांस में पूरी राम कथा सुना दिए ।

‘जी सर ! परंतु चुनाव का समय नजदीक है, अब सिर्फ पांच महीने बचे हैं । कुछ करिए ?’
सहायक चाटुकारिता वाले लहजे में बोला ।

‘हमने पूरा प्लान बना लिया है, मंत्रिमंडल में विस्तार कर रहे हैं । सभी जातिवादी, धर्म वादी चंदाचोरों, हरामखोरों, चोरों- लुटेरों को लॉलीपॉप देंगे । पांच महीने के मंत्री हमें पांच साल की राजगद्दी दिलायेंगे । जनता का क्या वो तो बेवकूफ है । ससुरी मर मिटेगी, जल भुनेगी धर्म जाति की भट्टी में’…

मुख्यमंत्री जी शैतानी मुस्कान बिखेरते हुए बाहर गार्डन में घूमने निकल गये और उनका निजी सहायक वुत बना उन्हें देखता रह गया ।

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