सर्वपितृ अमावस्या : पितृओं को खुश करने का अवसर

वीरेंद्र बहादुर सिंह

हिंदू शास्त्र के अंतर्गत भादौ सुदी पूर्णिमा से अश्विन वदी अमावस्या तक को श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) के नाम से जाना जाता है। जिस मनुष्य ने जिस तिथि को इस धरती पर देहत्याग किया है, उस तिथि को उसे याद कर के शास्त्रोक्त विधि की जाती है। कल्पतरु ग्रंथ के अनुसार श्रद्धा से किए गए पितृकार्य को श्राद्ध कहा जाता है। जो संबंध आत्मा से उसी तरह मन से और निकट के हों, भले ही वे खून के संबंध हो या न हों, पर उस मनुष्य को भी परम गति प्रदान करने के लिए इन सोलह दिनों में श्रद्धाभाव से किए गए कर्म को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध पक्ष साल में एक बार आता है। उस समय हम सभी अपने पितृओं को याद कर के पुष्पहार अर्पण कर, तर्पण कर, तीर्थक्षेत्रों में पिंडदान कर उसी तरह प्रीत्यर्थ ग्रौ ग्रास, कागवास और श्वानवास अर्पण कर पितृपूजन किया जाता है।

इस पितृपक्ष में पितृदोष, नारायणबलि, पितृयॢज्ञ, पितृओं के लिए पिंडदान, तीर्थक्षेत्रों में पिंडदान कर तर्पण कर के पितृओं को प्रसन्न किया जा सकता है। अगर किसी मनुष्य को किसी कारणवश अपने स्वजनों की मृत्युतिथि याद न हो तो उस मनुष्य की सदगति के लिए ऋषिमुनियों ने सर्वपितृ अमावस्या को उस व्यक्ति प्रीत्यर्थ पितृकर्म करने को कहा है। सर्वपितृ अमावस्या को सभी पीढ़ी के पितृओं की पूजा करने का पर्व माना जाता है। अगर कोई मनुष्य ब्राह्मणों को बुला कर पितृपूजन करने में असमर्थ है तो वह खुद ही अपने घर में पितृओं का तर्पण कर सकता है। जिसकी विधि निम्न प्रकार है।

एक पवित्र बर्तन में शुद्ध जल लें। उस जल में थोड़ा दूध, जौ, काला तिल, चंदन उसी तरह तुलसी अर्पण करें। उस व्यक्ति ने दूब के आसन पर दक्षिण की ओर मुंह कर के संकल्प सहित गोत्रोच्चार करना चाहिए। इसके पितृतीर्थ मुद्रा द्वारा दूब से हाथ में जल ले कर पितृओं के पूर्ण नाम ले कर गोत्रोच्चार सहित 3-3 जलांजलि दें। जलांजलि देते समय “तस्यै स्वध्याय नम:” मंत्र द्वारा पिता, दादा, परदादा, माता, दादी, परदादा इसी तरह परिवारजनों काका, मामा, मौसी, बुआ आदि किसी भी संबंधी के नाम से जलांजलि द्वारा तर्पण करें। हो सके तो यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराएं। श्री हरि विष्णु का पूजन करें। उस दिन पीपल के वृक्ष में पितृओं का वास होने से वृक्ष के जड़ में पानी चढ़ाएं, दिया कर के पितृओं की सदगति के लिए प्रार्थना करें। सर्वपितृ अमावस्या को यह विधि करने से पितृदोष में राहत मिलती है और पितृ तृप्त होते हैं, साथ ही परिवारजनों से पितृ प्रसन्न रहते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के पीछे एक सुंदर कथा है, जिसमें उसकी महिमा बताई गई है।

सालों पहले एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। उसका एक बेटा था, जिसका विवाह बगल के गांव की लड़की के साथ हुआ था। समय के साथ बुढ़िया की मौत हो गई। एक बार चूल्हा के लिए लकड़ी लेने बुढ़िया बेटे के साथ जगल में गई थी। वहां उसे जहरीले सांप ने डस लिया। उसकी मौत हो गई। वह लड़की विधवा हो गई। गांव के लोगों ने उस लड़की को समझाया कि इस वंश में कोई रहा नहीं, इसलिए वह अपने माता-पिता के यहां चली जाए। गांव वालों के कहने पर वह कन्या अपने माता-पिता के यहां चली गई। मायके वालों ने समझाबुझा कर उस कन्या की दूसरी जगह सगाई कर दी। बैलगाड़ी में बैठ कर वह कन्या दूसरी जगह मिलने जा रही थी तो रास्ते में एक नदी पड़ी। बैलगाड़ी सहित उस नदी को पार नहीं किया जा सकता था। इसलिए बैलगाड़ी वाले ने उस कन्या से उतर कर नदी पार करने को कहा। नदी पार कर के कन्या उस पार पहुंची तो उसके कपड़े गीले हो गए थे। वह वहीं पीपल के पेड़ के नीचे अपने कपड़े निचोड़ने लगी। पीपल के पेड़ से तमाम पितृ नीचे आ कर वह पानी पीने लगे। आश्चर्य से उस कन्या ने पूछा, “आप लोग कौन हैं और यह पानी क्यों पी रहे हैं?”

पितृओं ने कहा, “बेटा हम तुम्हारे पितृ हैं। अब हमारे परिवार में पानी पिलाने वाला कोई रहा नहीं। तू भी दूसरी जगह शादी कर के अब पराई होने जा रही है। आज अंतिम बार हम तुम्हारे हाथ का पानी ग्रहण करने आए हैं।”

उस कन्या ने कहा, “हे पितृओं, मैं दूसरी जगह शादी नहीं करना चाहती, इसलिए अब आप ही कोई रास्ता बताएं कि मैं हमेशा आप लोगों की पितृओं के रूप में पूजन कर सकूं। वह दिन था अश्विन वदी अमावस्या यानी सर्वपितृ अमावस्या का।

उनमें से एक पितृ ने कहा, “बेटा, हम तुम्हें अपना बेटा देते हैं, पर यह बात किसी से कहना नहीं। कन्या पितृओं की बात से सहमत हो गई। इसके बाद अपने पिता के घर जा कर उसने अपनी ससुराल जाने का आग्रह किया। फिर वह ससुराल आ गई। रोज रात को उसका पति आता। पितृओं की कृपा से वह ससुराल में दिन बिताने लगी। वह गर्भवती हो गई। नौवें महीने उसने सुंदर पुत्र को जन्म दिया। लोग तरह-तरह की बातें करने लगे, पर उसने किसी से कुछ नहीं कहा। इसी तरह दिन बीतते रहे। उसका बेटा दस साल का हो गया। तब उसने सर्वपितृ अमावस्या को बहुत बड़ा यज्ञ किया। उस यज्ञ की पूर्णाहुति में उस पुत्र के शरीर में आ कर पितृओं ने सभी से पूरी बात बताई, साथ ही यह भी बताया कि अब उन्हें मुक्ति मिल गई है। इसके बाद गांव वालों ने बहू से माफी मांगी।

इस तरह सर्वपितृ अमावस्या को किया पितृकर्म मनुष्य के जीवन में आनंद वैभव सुख और ऐश्वर्य प्रदान करता है। सर्वपितृ अमावस्या को जो यह कहानी सुनता है, उसके पितृ प्रसन्न होते हैं।

पितृओं की खुशी के लिए किए जाने वाले कार्य

  • सर्वपितृ अमावस्या को पीपल में जल चढाएं, दिया जलाकर पितृओं के लिए प्रार्थना करें।
  • श्रीमदू भगवद् गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें।
  • सर्वपितृ अमावस्या को गाय को घास, कागवास और मूक जानवरों को उनकी रंचि के अनुसार भोजन कराएं।
  • सर्वपितृ अमावस्या को कुआं के पास एक दिया में तीन बत्तियां और अगरबत्ती जला कर पितृओं का स्मरण करें।
  • कुआं के पास पितृदोष निवारण यंत्र की स्थापना कर विधिवत पूजा करें।
  • पितृओं की खुशी के लिए पिंडदान, तर्पण, पितृयज्ञ, नारायणबलि करें।
  • पितृमोक्षार्थ अश्विन कृष्ण पक्ष में पितृमोक्षार्थ श्रीमद् भागवत अनुष्ठान कराएं।
  • हो सके तो पितृपक्ष में यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान करें।
  • सर्वपितृ अमावस्या को विष्णु सहस्र नामक पाठ करें।
  • पितृपक्ष में नियमित पितृ सूक्त का पाठ करें।

¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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वीरेंद्र बहादुर सिंह

लेखक एवं कवि

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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