कविता : एक-दूजे का सहारा बन जाएंगे

प्रेम बजाज

उम्र सत्तर के पार होगी, चेहरे पे ना वो ताब होगी,
बालों में सफेदी होगी, कानों पे रखी चश्मे की डंडी होगी।
थोड़ी-थोड़ी त्वचा पे दिखती झुर्रियां होगी, माथे पे भी कुछ सिलवटें दिखती होंगी,
चलना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा, कुछ वजन भी तो बढ़ जाएगा।

फुर्तीली वैसी ना रहेगी, रूक-रूककर ही ये सांस चलेगी,
भारी पन सा सीने पे रहा करेगा, खाने का परहेज भी डाक्टर कहा करेगा।
कभी खिचड़ी तो कभी दलिया को भोजन बनाएंगे हम, चाट-पकौड़ी खाने लायक कहां रह जाएंगे हम,
तुम भी तो कुछ झुक जाओगे, जब भी पोते संग दादा दौड़ लगाएगा।

पेट थोड़ा तुम्हारा भी निकल जाएगा, बैठे-बैठे ही सब काम हो पाएगा,
ज्यादा चलने पर थकावट महसूस हो जाएगी, बहू आराम करने का फरमान सुनाएगी,
दवा-दारू के बिन ना गुज़ारा होगा, ये हाल जब हमारा होगा।

क्या तब भी इस तरह से सब हमें सर झुकाएंगे, क्या तब भी हमें सर ऑंखो पे बिठाएंगे,
या दूर से ही दुआ-सलाम करके चले जाएंगे।
पास हमारे आना किसी को होगा गवारा? क्या दूर से ही हम सब देखा करेंगे नज़ारा।

ना जाने तब कैसा ये समां होगा, शायद बदला-बदला जहां होगा,
हम दोनों नहीं बदलेंगे, बेशक बदले जहां, या बदला खुदा होगा।
जैसे है हम आज के पल में, कल भी वैसे ही दुःख-सुख संग -संग हम सह लेंगे,
ना मिलेगा हमें हलवा-पूरी तो सूखी रोटी नमक के साथ खा हम लेंगे।
नहीं चाहिए सहारा किसी का एक-दूजे का साथ निभाएंगे, तुम बनना आंखें मेरी, हम हाथ तुम्हारा बन जाएंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights