कविता : मकड़ियों का जाला

राजीव कुमार झा

इस मंदिर के पिछवाड़े
किसने फेंका
इतने सारे उदास
गंदे मटमैले
सड़ते
गेंदे के पीले फूलों की
माला
बाजार के बाहर

देह व्यापार के
इस कोठे पर
रात – दिन खुला रहता
जंग लगा
कोई बहुत पुराना
ताला
यहां बरामदे में
सजी संवरी बैठी
औरतों – लड़कियों को
किस भाई बाप ने

यहां आकर बैठाया
शायद कोई
इनमें से कुछ को
गांव शहर से
अपह्रत करके भी
किसी ने लाया
किसने उनको
यहां बचाया
यह कैसा शादी
ब्याह रचाया

यहां अंधेरे कमरों में
नगरवधू बनकर
सबने अपना संसार
बसाया
यहां लटका रहता
बरामदे में
मकड़ियों का जाला
बर्बाद होती जिंदगी
अंधेरे कमरे में
कभी जलता

बिजली का उजाला
आधी रात में
यहां चांद छिप जाता
आदमी देह की
भूख से
बेहाल होकर
यहां आता
आवारगी में
खून पसीने की
कमाई
वेश्याओं के पास
जाकर

लुटाता
चकलाघरों की बदबू
अपनी किसी चुप्पी में
जब गुमसुम छिपाता
धूपभरी उन राहों में
आकर चांद
कुछ पल उदास हो
जाता
यहां सूरज कोई
बेसहारा लड़कियों को

खूब रुलाता
किस यातना से भरी
यहां उनकी
जिंदगी गुजरती
देह व्यापार के धंधे में
भले घर की कोई
लड़की
जब शहर के
किसी गेस्ट हाउस से

गुमसुम
निकलती
मानो बर्फ की
सिल्लियों के बीच
अंधेरे कमरे में
फेंकी
किसी लावारिस
औरत की लाश
बहुत दूर तक
महकती
सड़कों से उठाई गयी
औरतों लड़कियों को

तलाशते लोग
अपने किन घरों में
दुबके ठिठक गये
भले लोगों की
बस्तियों में
घूमते लोग
बेखौफ हर जगह
आते – जाते
रुपये पैसों की चाह में
मायूस बनी औरतों को
इशारों से बुलाते

उन्हें बेहद गंदी फ़िल्में
दिखाते
शराब और सिगरेट
पीने की
लत लगाते
जिंदगी के
इस सब्जबाग में
आकर
लूट खसोट करके
लोगों को
घर का रास्ता दिखाते

देह व्यापार का धंधा
अब हर जगह
फल फूल रहा
सोशल मीडिया ने
सारे समाज को
गंदा कर दिया
समाज में लोगों के
यौन जीवन में
पवित्रता
अब खत्म होती गयी
लड़कियों – औरतों की
गुमराह होती
जिंदगी में
अधेरी रात कहर
ढा रही


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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राजीव कुमार झा

कवि एवं लेखक

Address »
इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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