कविता : जंगल की राह

राजीव कुमार झा

हम सब कुछ
अर्जित करते
खाली मन को
कुछ ऐसी
बातों से भरते
जो सिर्फ
हमारी हैं

मन के भावों को
हमने कभी जताया
सबको अपने पास
सदा तब पाया
कंकड़ चुनकर
महल बनाया
मानो धूप में
धान की बाली

झूम रही हो
इसी पहर तब
सागर की लहरें
तट पर आकर
धरती को
चूम रही हों
सूर्य सभी के
चेहरे पर

तेज यहां फैलाता
पूरब पश्चिम का रंग
तुम्हें तब कितना
भाता
यह भोला मन
कितनी बातों को
कहां समझ अब
पाता

सूरज तब चंदा को
सारी बात बताता
सोई रातों में
कौन हवा को
यहां जगाता
यह मन का दीपक
जलता – बुझता
जंगल में
राह बनाता


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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राजीव कुमार झा

कवि एवं लेखक


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इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085


Publisher »

देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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