कविता : धुआं धुआं

धुआं धुआं ये कैसा धुआं लपेटे धरा पाग ना दिखे आग जिज्ञासा मन में जगाये क्या कहीं लगी आग आंखों के आगे दृश्यमान सर्वत्र धुआं धुआं। ना दिखे हाथ से हाथ कैसी अनोखी बात सबकुछ ठिठुरन भरा चहुंओर हरा भरा भीगा भीगा धरती का गात अजब प्रभात धुआं धुआं। कोई कोहरा कोई धुंध कहे कोई … Continue reading कविता : धुआं धुआं