कविता : मैं बाती हूँ

मैं एक बाती हूँ, हर रोज़ में जलती हूँ। जलकर ॲंधेरा मिटाती हूँ, प्रकाश सभी तक पहुँचाती हूँ।। मुझें कोई याद नही करता, क्यों कि मैं दीया नही बाती हूँ। मैं हर रोज़ बनती हूँ बिगड़ती हूँ, तेल में भीगकर जलती हूँ।। मेरा निर्माण सभी इसलिए करते है कि, मैं दूसरों के जीवन में उजाला … Continue reading कविता : मैं बाती हूँ