कविता : शहर की सभ्यता

घर परिवार आंगन रिश्ते नातों को भुलाकर यहां सेक्स के बाजार में जिंस बनती लड़कियां वेश्यालयों के अंधेरे बंद कमरों में अब नहीं सिसकतीं वे ग्राहकों की तलाश में हवाई जहाज पर सफर करते सागर के पार चली जाती हैं पहाड़ों को लांघते हरा-भरा जंगल उन्हें याद आता यहां नाइट काटेज में अक्सर कोई उन्हें … Continue reading कविता : शहर की सभ्यता