कविता : गुब्बारा
राजीव कुमार झा
तुम्हारे पास मेरा
कुछ भी नहीं है
आज शाम उदास
खड़ी है
तुम चांद को देखने
आंगन में भी नहीं आयी
वह राह देखता रहा
सितारों ने खिड़कियों पर
आकर
तुम्हें उसके बारे में
कहा
सुबह की हवा
आज कितनी सुहावनी है
सुबह से ढोल बजा रहा
में किसने तुझे
मेरे घर आने के बारे में
कहा
मौसम सबके साथ
मेले में आया
तुम गुब्बारे की तरह हो.
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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