चार हजार अभ्यर्थियों को नियुक्ति के आदेश जारी

सुनील कुमार माथुर

राजस्थान सरकार ने एल डी सी भर्ती 2013 के चार हजार अभ्यर्थियों की नियुक्ति के आदेश जारी किये हैं। सरकार ने 46 दिन में नियुक्ति देने की घोषणा की हैं और यह भर्ती प्रक्रिया 21 अक्टूबर तक चलेगी। पंचायत राज विभाग की कनिष्ठ लिपिक भर्ती 2013 की वरीयता सूची में वर्षो से इंतजार कर रहे अभ्यार्थियों को को नियुक्ति देने के लिए राजस्थान सरकार ने हरी झंडी दे दी हैं।

राज्य मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुसार वरीयता सूची में नियुक्ति से शेष रहे चार हजार पदों पर भर्ती की प्रक्रिया तय कर दी हैं। इसके अनुसार 46 दिनों में अभ्यार्थियों को नियुक्ति आदेश जारी कर दिये जायेंगें। नौ साल की कडी मेहनत अब अपना रंग दिखा रही हैं। बताया जाता हैं कि इससे पहलें राजस्थान लोक सेवा आयोग अजमेर द्धारा वर्ष 1986 में कनिष्ठ लिपिक संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की गयी थी।

इस परीक्षा के बाद सरकारी सेवा में नियुक्ति के दौरान जमकर धांधली मची। बीकानेर में पदों की संख्या छः से बढाकर चार सौ आठ कर दी और वहां साढे सैंतीस प्रतिशत अंक लाने वाले अभ्यार्थियों को सरकारी सेवा में नियुक्ति दे दी और अन्य जिलों में साठ प्रतिशत अंक लाने वाले अभ्यार्थियों को सरकारी सेवा से वंचित कर दिया।

तब सफल अभ्यार्थियों ने न्याय के लिए पहले हाईकोर्ट का ध्दार खटखटाया और फिर देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितम्बर 1993 को सफल अभ्यार्थियों के हक में फैसला दे दिया लेकिन इन सफल अभ्यार्थियों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के करीबन सात साल बाद अप्रैल – मई 2000 में नियुक्तियां दी गई लेकिन 27 सितम्बर 1993 से अप्रैल – मई 2000 तक की अवधि का कोई लाभ नहीं दिया।

यह समय न तो सेवाकाल में जोडा गया और न ही इस समय का राज्य सरकार ने कोई हर्जाना ही दिया जिसके कारण अनेक अभ्यार्थियों को सरकारी सेवा के दौरान 9-18-27 का पूरा लाभ नही मिला। चूंकि उनका सेवाकाल ही करीब-करीब 17 साल ही हुआ। जिससे वे 18-27 के लाभ से वंचित रह गये वही कम सेवाकाल होने से उनकी पेंशन भी कम बनी जिसकी बजह से इन्हें दौहरी मार झेलनी पड रही हैं।

सेवानिवृत कनिष्ठ लिपिक सुनील कुमार माथुर ने बताया कि सरकार की गलती से नियुक्ति में देरी हुई जिसकी सजा अभ्यार्थी क्यों भुगते और उक्त अवधि का मुआवजा दिलाने के लिए सेवानिवृत लिपिक सुनील कुमार माथुर ने स्थानीय जन प्रतिनिधियों, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, केंद्र व राज्य के विधि मंत्री, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति तक गुहार लगाई लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई।

अपने आपको लोक कल्याणकारी सरकारें कहते हैं लेकिन जनता की पीडा कोई नहीं सुनता हैं। पत्रों पर कार्यवाही करना तो दूर शिकायतकर्ता को पत्र प्राप्ति की सूचना भी नहीं दी जाती हैं। अगर पत्र का जबाब देगें तो मात्र पत्र को इस विभाग से उस विभाग में भेजते रहते हैं पर पीडित पक्षकार को न्याय नहीं मिलता हैं।

देश का हर व्यक्ति साधन सम्पन्न नहीं हैं कि वह न्ययालय का दरवाजा खटखटायें। समस्या तो समाधान चाहती हैं न कि दलगत राजनीति। 27 सितम्बर 1993 से अप्रैल मई 2000 की अवधि का सरकार लाभ दिलाये ताकि पीडित पक्षकार को मानसिक व आर्थिक वेदना से मुक्ति मिलें और पीडित पक्षकार को उसका वाजिब हक मिल सकें।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार माथुर

स्वतंत्र लेखक व पत्रकार

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33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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