विकास के पथ पर भारत

विधा : गीत, हरिगीतिका छंद

डॉ. धाराबल्लभ पांडेय ‘आलोक’

भारत देश हमारा प्यारा, जग सिरमौर बनेगा।
विकसित हो संभ्रांत शक्ति से, विश्व विजय कर लेगा।।

गरिमा महिमा संस्कारों से, सबका मित्र बनेगा।
छोटे-बड़े सभी देशों से, सद्भावना धरेगा।।
शक्ति और सामर्थ्य भाव से, विकसित राष्ट्र बनेगा।
विकसित हो संभ्रांत शक्ति से, विश्व विजय कर लेगा।।

हम भारतवासी संस्कृति से, कण कण सदा संवारें।
स्वच्छ, स्वस्थ भारत की महिमा, जन-जन तक पहुंचाएं।।
सबका साथ विकास सभी का, सबको उन्नति देगा।
विकसित हो संभ्रांत शक्ति से, विश्व विजय कर लेगा।।

घर-घर जल-नल, शौचालय, सड़कों का जाल बिछाकर।
शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योगों, से सुविधाएं पाकर।।
स्वस्थ सुखी समृद्ध शांतिप्रिय, आगे सदा बढ़ेगा।
विकसित हो संभ्रांत शक्ति से, विश्व विजय कर लेगा।।

भारत देश हमारा प्यारा, जग सिरमौर बनेगा।
विकसित हो संभ्रांत शक्ति से, विश्व विजय कर लेगा।।

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