मीत मेरे बचपन के

मीत मेरे बचपन के जाने कहां खो गए... छोड़ गांव की गलियां, शहर की भीड़ का हिस्सा हो गए... मीत मेरे बचपन के जाने कहां खो गए...

सुनील कुमार

मीत मेरे बचपन के जाने कहां खो गए
छोड़ गांव की गलियां
शहर की भीड़ का हिस्सा हो गए
मीत मेरे बचपन के जाने कहां खो गए।

भूल गये बचपन के सब खेल सुहाने
शामिल जिंदगी की दौड़ में हो गए
मीत मेरे बचपन के जाने कहां खो गए।

गांव की वो गलियां कल-कल करती नदियां
बात सपनों की अब हो गए
मीत मेरे बचपन के जाने कहां खो गए।

मिल-जुलकर मनाना सब तीज-त्यौहार
बांटना आपस में खुशियां और प्यार
सीमित अब हो गए
मीत मेरे बचपन के जाने कहां खो गए।

छोड़ गांव की मदमस्त बयार
आदी कूलर एसी के हो गए
भूल गांव के गन्नों की मिठास
प्रेमी पेप्सी- कोला के हो गए
मीत मेरे बचपन के जाने कहां खो गए।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार

लेखक एवं कवि

Address »
ग्राम : फुटहा कुआं, निकट पुलिस लाइन, जिला : बहराइच, उत्तर प्रदेश | मो : 6388172360

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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