न हवा शुद्ध है न पानी शुद्ध है न धूप शुद्ध है न छांव शुद्ध है मनुष्य के स्वार्थ ने धरती पर कुछ भी शुद्ध न छोड़ा प्रकृति को तहस-नहस करके विकास का राग अलापता है। कमरतोड़ मंहगाई से फीकी होती त्योहारों की रौनक नित बढ़ रहा प्रदूषण का साम्राज्य ग्लोबल वार्मिंग की लपटों से … Continue reading मनुष्य और प्रकृति
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