ज़िंदगी : आपाधापी, भागदौड़ी, रेलमपेल हो गयी

आशीष तिवारी निर्मल

आपाधापी, भागदौड़ी, रेलमपेल हो गयी
ज़िंदगी मैट्रो शहर की कोई रेल हो गई ।

दो पाटों के बीच में पिस रहा हर कोई ऐसे
ज़िंदगी डालडा कभी सरसों का तेल हो गई।

बाबाजी के प्रवचन सुनके घर को लौटा हूं मैं
खबर चल रही है टीवी में,उनको जेल हो गई।

हुस्न के कारागृह में चक्की चला रहे कितने ही
मुझ निरापराधी की चंद दिनों में बेल हो गई।

टिकते कहां है मोबाइल युग के रिश्ते ऐ-निर्मल
कस्मे,वादे और मोहब्बत जैसे कोई सेल हो गई।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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आशीष तिवारी निर्मल

कवि, लेखक एवं पत्रकार

Address »
मकान नंबर 702 लालगाँव, जिला रीवा (मध्य प्रदेश) | Mob : 8602929616

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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