कविता : पांच सितारा होटल
सुनील कुमार माथुर
आज लम्बे अर्से के बाद
मां के हाथ का बना खाना खाया
खाना खाकर ऐसा लगा
मानों पांच सितारा होटल में खाना खाया
क्या मस्त दलिया मां ने बनाया
इतना चटपटा और स्वादिष्ट बनाया कि
बस मैं अंगुलियां ही चाटता रह गया
आज पता चला कि
असली पांच सितारा होटल तो आपना घर ही है
मां के हाथों से बने व्यंजनों में जो स्वाद है
वैसा स्वाद अन्यत्र नहीं है
मां के हाथों से बने व्यंजनों में
मां की ममता , प्यार , स्नेह व विश्वास का
छोंक लगा हैं, रोटियो में लाड – प्यार का स्वाद है
सब्जी में करूणा व वात्सल्य का मसाला हैं
आज पता चला कि
आसली पांच सितारा होटल मां की रसोई ही हैं
जहां परिवार के हर सदस्य को
पौष्टिक आहार ही मिलता हैं
बाहर के पांच सितारा होटलों में
वह आनंद नहीं है , वह संतुष्टी नहीं है
जो मां के हाथ से बने भोजन में हैं चूंकि
मां तो साक्षात् अन्नपूर्णा है
मां तो आखिर मां ही हैं
असली पांच सितारा होटल तो
मां की रसोई ही हैं
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Bahut hi shandar
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बहुत सुंदर कविता
अति सुंदर ।
👏👏👏
बहुत अच्छा
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