कौन सी दिशा में हैं अखिलेश…?

2019 के लोकसभा चुनावों के एलान के बाद अखिलेश यादव और मायावती ने सपा-बसपा गठबंधन का एलान किया। दोनों पार्टियों के साथ ही जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल भी इस गठबंधन का हिस्सा थी।

2022 के विधानसभा चुनाव में कई छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़े अखिलेश के लिए चुनाव के बाद परेशानियां कम नहीं हो रही हैं। पहले चाचा शिवपाल यादव नाराज हुए। फिर आजम खान के नाराज होने की खबरें महीनों चलती रहीं। राज्यसभा चुनाव के बाद गठबंधन की साथी महान दल ने साथ छोड़ दिया। अब समाजवादी पार्टी गठबंधन में शामिल एक और पार्टी के गठबंधन छोड़ने की अटकलें हैं। कहा जा रहा है कि ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी गठबंधन छोड़ सकती है।

अखिलेश के लिए चुनाव के पहले गठबंधन और चुनाव खत्म होने के बाद उसके टूटने का ये पहला मौका नहीं है। 2016 में पार्टी पर प्रभुत्व के लिए परिवार में हुए संघर्ष के बाद हर चुनाव में ये देखने को मिलता है। यानी, जब से पार्टी अखिलेश यादव के नियंत्रण में आई है उसके बाद जितने चुनाव हुए हर चुनाव में ऐसा ही देखा गया। चुनाव के पहले अखिलेश को नए साथी मिले। तब से अब तक किसी भी चुनाव में उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं आए।

नतीजे के बाद कभी सहयोगी ने साथ छोड़ दिया तो कभी खुद अखिलेश ने उनसे किनारा कर लिया। आइये जानते हैं पिछले दस साल में सपा ने कब कैसे चुनाव लड़ा? चुनाव का नतीजा क्या रहा है? नतीजे का उसके गठबंधन पर क्या असर पड़ा? 2012 में समाजवादी पार्टी 401 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी। दो सीटों पर उनसे उम्मीदवार नहीं उतारे थे। कुंडा में राजा भैया और बाबगंज में राजा भैया के करीबी विनोद सोनकर के पक्ष में उम्मीदवार नहीं उतारे थे। दोनों सपा के समर्थन से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे और जीते थे।

हालांकि, अब दोनों के बीच काफी तल्ख रिश्ता है। कभी अखिलेश कैबिनेट में मंत्री रहे राजा भैया ने अब अपना दल बना लिया है। 2022 के चुनाव में उनकी पार्टी को दो सीटें मिली हैं। ये वही सीटें हैं जो राजा भैया और विनोद सोनकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीतते रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। इन चुनावों में 311 सीटों पर सपा ने उम्मीदवार उतारे। वहीं, 114 सीटों पर कांगेस ने चुनाव लड़ा। गठबंधन के बाद भी 24 सीटों पर दोनों के प्रत्याशी आमने-सामने थे।

कुंडा और बाबागंज में 2012 की तरह ही 2017 में भी सपा ने राजा भैया और विनोद सोनकर को समर्थन दिया। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस और सपा ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। ये वही दौर था जब अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच सपा पर कब्जे की लड़ाई चल रही थी। परिवार में अकेले पड़े अखिलेश ने कांग्रेस का साथ लिया। हालांकि, चुनाव में उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। अखिलेश को सत्ता गंवानी पड़ी।

उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव के करीब एक साल बाद राज्य में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस और सपा के रास्ते अलग हो गए। दोनों ने इन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। लोकसभा उपचुनाव के प्रचार के दौरान अखिलेश यादव ने गठबंधन में आई दरार की वजह बताई। अखिलेश ने दावा किया कि गुजरात विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद कांग्रेस का व्यवहार बदल गया।

इस उपचुनाव में सपा के नए गठबंधन की नींव पड़ी। उपचुनाव के दौरान बसपा ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। पार्टी ने सपा के लिए प्रचार तो नहीं किया, लेकिन अपने वोटरों को सपा उम्मीदवारों के पक्ष में वोट डालने का संदेश जरूर दिया। इस उपचुनाव में सपा को दोनों सीटों पर जीत मिली। इस जीत की बड़ी वजह बसपा का साथ मिलना माना गया। यहीं से 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा गठबंधन की नींव पड़ी।

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