आदर्श संस्कार ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान हैं…

सुनील कुमार माथुर 

आदर्श संस्कार ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान हैं । अतः व्यक्ति को हमेशा सेवा , समर्पण और अनुशासन के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए । हर व्यक्ति अपनी स्वच्छ छवि , कर्तव्य निष्ठा , विश्वास , स्नेह , ईमानदारी, कर्तव्य परायणता और देश भक्ति के लिए पहचाना जाना चाहिए लेकिन आज का इंसान इन सब से परे हैं ।

आज अत्याधुनिक संसाधनों के चलतें वह गलत राह पर चल पडा हैं चूंकि आज कि युवापीढ़ी को संस्कारों व भारतीय सभ्यता और संस्कृति की कोई जानकारी नहीं है । अगर है भी तो वे उसकी अनदेखी कर रहें है चूंकि उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा से जोडने का कार्य न तो आज की शिक्षण संस्थान कर रही हैं और न ही अभिभावक कर रहें है । नतीजन वे आपराधिक कृत्यों में लिप्त होकर अपना , अपने परिवार , समाज व राष्ट्र का ही नुकसान कर रहें है ।

आज की शिक्षा केवल किताबी ज्ञान ही दे रही हैं । इसमें देश भक्ति से ओतप्रोत गीत , पाठ , महापुरुषों की जीवनियां, महान स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग व बलिदान के पाठों का नितान्त अभाव नजर आ रहा हैं । भला ऐसे में बच्चों में देशभक्ति की भावना का कैसे विकास और संचार हो पायेगा आज का विधार्थी हिंसक प्रवृत्ति का होता जा रहा है । बात – बात में क्रोधित होना उसके जीवन का अभिन्न अंग बन गया हैं । यही वजह है कि आज के इंसान के क्रोध , लडाई – झगडों को देखकर सांप व नेवले को भी शर्म आती हैं ।

युवा वर्ग को चाहिए कि वह अपने अमूल्य जीवन को यूं ही व्यर्थ में न गंवाये अपितु पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ अपने रचनात्मक मिशन में आगें बढे।

प्रायः यहीं कहा जाता हैं कि भावी भारत का भविष्य युवाओं के हाथों में ही सुरक्षित हैं । भारतीय शिक्षा का आधार भारत की संस्कृति एवं अध्यात्म ज्ञान हैं । इस कारण से शिक्षा बालक को लौकिक एवं पारलौकिक सभी तरह से परिपूर्ण करती हैं । केवल अर्थोपार्जन के लिए शिक्षा का उपयोग निकृष्टतम उपयोग हैं । अतः इससे बचकर संपूर्ण समाज एवं मानवता के हित में बालक को योग्य बनाना चाहिए । इसके लिए नैतिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए ।

हमारे संतों व महापुरुषों का कहना हैं कि सोच भले ही नई रखों लेकिन संस्कार पुराने ही अच्छे हैं । आपकी खुशियों में वे लोग शामिल होते हैं जिन्हें आप चाहतें है लेकिन आप के दुखों में वे लोग शामिल होते हैं जो आपको चाहतें है । दीपक का जीवन वंदनीय और सराहनीय है चूंकि वह दूसरों के लिए जलता हैं , दूसरों से नहीं । जिन्दगी तो सभी के लिए एक रंगीन किताब हैं । फर्क बस इतना हैं कि कोई हर पन्ने को दिल से पढ रहा हैं और कोई दिल रखने के लिए पन्ने पलट रहा हैं ।

अतः युवा वर्ग को चाहिए कि वह अपने अमूल्य जीवन को यूं ही व्यर्थ में न गंवाये अपितु भारतीय सभ्यता और संस्कृति व नैतिक मूल्यों का पालन करतें हुए पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ देश हित के कार्य करतें हुए अपने रचनात्मक मिशन में आगें बढें । याद रखिये समय , विश्वास और सम्मान ये ऐसे पक्षी है जो उड जायें तो वापस नहीं आते हैं । अतः व्यक्ति को हमेशा नेक दरियादिल होना चाहिए और असफलताओं से घबराना नहीं चाहिए अपितु और अधिक आत्मविश्वास के साथ आगें बढें एक न एक दिन सफलता अवश्य ही मिलेगी और आपके कदमों को चूमेगी ।

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