मुझमें अवगुण नहीं है, मैं ईश्वर हूं : भगवान कृष्ण

बालकृष्ण शर्मा

भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच एक संवाद की कथा जो मैने बचपन में अपने पिताजी के मुंह से सुनी थी आप के साथ साझा करना चाहता हूं। कथा कुछ इस प्रकार है।

पांडवों की माता कुंती भगवान कृष्ण की बुआ होने के कारण कृष्ण और अर्जुन के बीच भाई भाई का रिश्ता था। अर्जुन की पत्नी सुभद्रा कृष्ण की बहन थी तो उनका रिश्ता जीजा साले का भी था। अर्जुन श्रीकृष्ण को अपना मार्गदर्शक गुरु भी मानते थे। और महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी भी बने थे, तो यह भी एक रिश्ता ही बन गया था। अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को अपना परम मित्र मानते थे तो वहीं आराध्य ईश्वर भी मानते थे।

अधिकतर दोनों के बीच भगवान और भक्त का ही रिश्ता रहता था। युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण अर्जुन को तरह तरह की नसीहत देते रहते थे जिससे कभी कभी अर्जुन कुछ क्रोधित हो जाते थे। एक बार जब श्री कृष्ण नेअर्जुन को कुछ विशेष बर्ताव करने की सलाह दी तो अर्जुन को थोड़ा क्रोध आ गया और उसने क्रोधित होते हुए काहा आप हर बार मुझे यह कह कर टोकते रहते हो की अर्जुन ऐसा करो, अर्जुन वैसा करो । क्या मुझे युद्ध करना नहीं आता। आप मेरे सारथी हो तो आप सारथी का कर्तव्य निभाओ।

हर बार मुझे यह कह कर की में ईश्वर हूं, में सर्वेसर्वा हूं, मुझे उपदेश देना बंद करो और यह बताओ कि इस समय कौन बड़ा है और आप किस आधार पर कहते हो कि मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूं। श्री कृष्ण मुस्कुराए, बोले देखो अर्जुन मैं ईश्वर हूं और मैंने इस श्रृष्टि की रचना की है।इसी श्रृष्टि में मैने मनुष्यों की भी रचना की है। मैने मनुष्यों के लिए छत्तीस गुण और चौसठ कलाओं का निर्धारण किया है। प्रत्येक मनुष्य को बुद्धि के साथ एक गुण और एक कला दी है । तुम्हें मैने चौसठ कलाओं में से एक युद्ध कला में निपुणता दी है और छत्तीस गुणों में से एक बहादुरी का गुण दिया है।

तुम नृत्य कला, संगीत कला, पाक कला, वास्तु कला, अभिनय कला, हास्य कला, लेखन कला, आदि चौंसठ अन्य कलाओं से रिक्त हो।और तुममें बहादुरी के गुणों के अलावा दूसरे गुणों का अभाव है।मैने प्रत्येक मनुष्य को दया, क्षमा, सेवा, भक्ति, आदि छत्तीस गुणों में से एक मुख्य गुण दिया है। प्रत्येक मनुष्य अपने एक गुण के कारण संसार में आदर पाएगा और अपने अंदर की एक कला से अपना जीवन निर्वाह करेगा । इसी प्रकार छत्तीस अवगुणों में से हर मनुष्य को एक अवगुण भी मिला होगा। और वही अवगुण उसकी अवनति और दुःख का कारण बनेगा।

कृष्ण भगवान बोले, हे अर्जुन मैं मनुष्य रूप में होते हुए भी चौसठ कलाओं में पारंगत हूं और छत्तीस गुणों को धारण करता हूं। मुझमें एक भी अवगुण नहीं है। इसीलिए कहता हूं की में ईश्वर हूं।

सचमुच हम मनुष्यों में हर एक के पास ईश्वर की दी हुई एक कला है और एक गुण भी है। जिसने ईश्वर के द्वारा दी गई अपनी कला को पहचान कर अपने गुण का उपयोग करके अपने अवगुण को जीत लिया वही मनुष्य संसार में सुखभोग कर अपना नाम अमर कर जाता है। और जिसने अपने अंदर के गुण और कला को नहीं पहचाना , और अवगुण को नहीं परास्त किया वह मनुष्य सांसारिक बाधाओं से घिरा रहता है।इस संसार में योग और ईश्वर की भक्ति दो ही मार्ग प्रत्येक मनुष्य की कला और गुण का संयोग कर उसका जीवन सार्थक और आनंदमय बनाते हैं।

।।ओम नमो भगवते वासुदेवाय।।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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