शिक्षा के स्वरुप में बदलाव कितना अहम…?

ओम प्रकाश उनियाल

एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए शिक्षा खासा महत्व रखती है। यह तभी संभव है जब नागरिक शिक्षित होंगे। जहां शिक्षा का अभाव होता है वहां तरह-तरह की कुप्रथाएं, अंधविश्वास, कुरीतियां, आपसी वैमनस्य ज्यादा पनपते हैं। इसीलिए शिक्षा ग्रहण करने पर अधिक जोर दिया जाता है।

शिक्षा का मतलब केवल अक्षर-ज्ञान हासिल करना ही नहीं अपितु विचारों की शुद्धि करना भी है। अर्थात् शिक्षा से ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ सोच में भी बदलाव लाना भी होता है। शिक्षा जीवन को तराशने वाली एक ऐसी प्रक्रिया है जो निरंतर चलती रहती है एवं कुछ न कुछ नया सीखने को प्रेरित करती है। शिक्षा मनुष्य के सर्वांगीण विकास में अहम् भूमिका निभाने के अलावा व्यक्तित्व को निखारती है, व्यवहारिक बनाती है।

आज के दौर में शिक्षा का अर्थ शुरु में ही किताबों का बोझ लादना है। नन्हें-मुन्नों के कंधों पर भारी-भरकम बस्ते का बोझ लादकर शिक्षा-प्रणाली को ढोया जा रहा है। इस दबाव से बच्चों में तनाव बढ़ रहा है। एक तरफ नयी शिक्षा नीति में बदलाव कर लागू करके शिक्षा में गुणवत्ता लाने की बात की जा रही है तो दूसरी तरफ निजी विद्यालयों की लूट-खसोट जारी है। शिक्षा नीति में बदलाव लाना जरूरी है जिससे सरकारी और गैर-सरकारी में समान शिक्षा मिले।

निजी विद्यालयों में देखा गया है कि प्ले ग्रुप से ही मंहगी पुस्तकें, तरह-तरह की स्कूल-ड्रैस, होमवर्क थोप दिया जाता है। होमवर्क और कठिन पुस्तकों व ट्यूशन का दबाव बच्चे का मानसिक विकास बढ़ाने के बजाय घटाता है तथा पढ़ाई को बोझिल करता है। हालांकि, कई शिक्षाविद् इससे सहमत नहीं होंगे। मगर सच्चाई तो नकारी नहीं जा सकती।

पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जिसे ग्रहण करने में आसानी हो, सरलता हो। दिल्ली सरकार ने 2018 में सरकारी विद्यालयों में ‘हैप्पीनैस करिकुलम’ अर्थात् ‘खुशी पाठ्यक्रम’ की शुरुआत की। जो कि 5 से 13 साल की उम्र के बच्चों के व्यक्तित्व विकास में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

बच्चों का मानसिक विकास होता है। बच्चे स्वयं भी खुश रहते हैं। समाज और परिवार के प्रति सकारात्मक रुख रहता है। अपने परिवार व समाज के प्रति उनमें सम्मान की भावना जागृत होती है। ऐसा ही पाठ्यक्रम देश के अन्य सरकारी व निजी विद्यालयों में शुरु किया जाना चाहिए। बल्कि अनिवार्य करना चाहिए।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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ओम प्रकाश उनियाल

लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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