प्रकाश और खुशियों का पर्व दीपावली

सुनील कुमार माथुर

दीपावली दीपों का त्यौहार हैं । दीपों की जगमगाती लौ हमारे जीवन में उमंग और उल्लास भरती है । दीपावली के पर्व को लक्ष्मी जी के आगमन का दिन भी माना जाता है और लक्ष्मी पूजन के वक्त हम घर – प्रतिष्ठान के ध्दार , खिड़कियां खोल देते है ताकि लक्ष्मी जी का सुगमता के साथ आगमन हो सकें मगर आज इस भागदौड़ की दुनियां में लक्ष्मी की परिभाषा ही बदल गयी है । अब केवल धन – दौलत एवं वैभव ही लक्ष्मी कहलाते है ।

दीपावली का यह त्यौहार हर देशवासी के जीवन में खुशियां लायें । उन्हें अज्ञानता रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जायें और हिंसा के इस दौर से सम्पूर्ण भारत वर्ष को मुक्त कर सर्वत्र सादगी , शांति, सद् भाव , प्रेम व स्नेह का वातावरण बनें । हर भारतवासी भाई – भाई हैं । विश्व बंधुत्व की भावना सर्वत्र व्याप्त हो । प्रकाश और खुशियों का यह पर्व आपके जीवन में उल्लास व उमंग भर दे ।

हर गांव , ढाणी, शहर , नगर , महानगर दीपों की रोशनी में जगमगाता रहें । सदैव विश्व में अमनचैन और भाईचारे की भावना कायम रहें। हिंसा का कहीं भी नामो-निशान न हो । हर घर – आंगन में प्रेम की बहार हो । आदमी मिट्टी के दिये में स्नेह की बाती और परोपकार का तेल डालकर उसे जलाते हुए भारतीय संस्कृति को गौरव और सम्मान देता रहें । चूंकि दिया भले ही मिट्टी का हो , लेकिन वह हमारे जीवन का आदर्श हैं, दिशा है , संस्कारों की सीख है , संकल्प की प्रेरणा हैं और लक्ष्य तक पहुंचने का माध्यम हैं ।

दीपावली मनाने की सार्थकता तभी हैं जब भीतर का अंधकार दूर हो । भगवान महावीर ने दीपावली की रात को जो उपदेश दिया उसे हम प्रकाश पर्व का श्रेष्ठ संदेश मान सकतें है । भगवान महावीर की यह शिक्षा मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलौकिक करने वाली हैं ।

हमारे भीतर अज्ञान का अंधकार छाया हुआ है वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता हैं । जब ज्ञान का दीप जलता है तो भीतर और बाहर दोनों आलौकिक हो जातें है । दीपावली दीपों का त्यौहार है । यही वजह है कि दीपावली पर दीपक जलाकर रोशनी की जाती है । लेकिन आज पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंग जाने के कारण दीपक की लौ का स्थान नन्हीं – नन्हीं रोशनी की लडियों ने ले लिया है ।

रोशनी का आनंद जो दीपको की जगमगाहट में हैं वह अन्य रोशनी में नहीं है । भारतीय संस्कृति में दीपावली का पर्व धन ऐश्वर्य, सौन्दर्य, सम्पन्नता की देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं । अतः युगों से यह पर्व लक्ष्मी की पूजा का ऐसा समारोह है जो पूरे देश में हर्षोल्लास व उमंग के साथ मनाया जाता है और पटाखे छोडे जाते है ।

दीपावली के दिन भगवान श्री राम अयोध्या लौटे थे । उसी की खुशी में हम दीपावली मनाते आ रहें है । कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी अर्थात धनतेरस , चतुदर्शी ( नरक चतुदर्शी ) अमावस्या ( लक्ष्मी पूजन ) व कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा ये चार दिन दीपावली मनाई जाती है भैयादूज दीपावली के बाद आती है जिसे भी दीपावली के संग सम्मिलित किया गया हैं । इस दिन भाई बहन के घर जाकर भोजन करें व कायस्थ समाज इस दिन कलम दवात का पूजन अपने कुलदेवता भगवान चित्रगुप्त जी का पूजन करतें है एवं शोभायात्रा का आयोजन करते है ।

भगवान चित्रगुप्त जी के पूजन के पश्चात जो परसादी वितरित की जाती हैं उसमें गुड , चने , फूली , लड्डू, नारियल का बूरा व आखा धनियां मिलाकर उस प्रसादी का वितरण किया जाता हैं । धनतेरस के दिन घरों में नये बर्तन खरीदे जाते है । ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन नये बर्तन खरीदना शुभ होता है । इस दिन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धनवंतरि वैध की जयन्ती भी मनाई जाती हैं एवं भगवान धनवंतरि का पूजन किया जाता हैं । उन्हें भगवान विष्णु का अवतार समझा जाता हैं ।

छोटी दीपावली ( नरक चतुदर्शी ) कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को नरक चतुदर्शी के नाम से जाना जाता हैं इसे नरक चौदस , रूप चौदस , रूप चतुदर्शी के नाम से भी जाना जाता है । दीपावली के बाद गोवर्धन पूजन भी किया जाता हैं घर के मुख्य ध्दार के पास गाय के गोबर का घेरा बनाकर उसमें दूध व पानी डालकर पुष्प, दुर्वा ( दोब ) से गाय के बछडे की पूजा की जाती हैं । इसे दीपावली का ही अंग माना जाता है ।

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