ज्योत से ज्योत जलाते चलें
सुनील कुमार माथुर
भारत पर्वों एवं त्यौहारों का देश है जहां हर सप्ताह या हर पखवाड़े कोई न कोई तीज त्यौहार आते ही रहते है चूंकि भारत में विभिन्न जाति व धर्मों को मानने वाले लोग रह्ते है । कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत एक है । इसलिए हमारा देश पर्वों एवं त्यौहारों का देश कहलाता है । यह त्यौहार हमें अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता हैं । धनतेरस रूप चतुदर्शी , दीपावली, गोवर्धन पूजन, यम द्वितीया पंचपर्व का आगाज धनतेरस से हो जाता हैं ।
दीपावली को दीपों का त्यौहार भी कहा जाता है । इस दिन घरों को रंगबिरंगो रोशनी से सजाया जाता है । घरों के चौक में , आंगन में , ध्दार पर महिलाएं रंग बिरंगी रंगोली बनाती है । हर किसी में उत्साह , उमंग नजर आता हैं । हर किसी के मन में कुछ नया कर गुजरने का जज्बा होता है । प्राचीन काल में घर कच्चे होते थे जिन्हें लीप पोत कर सजाया जाता था और दीवारों पर आकर्षक चित्रकारी की जाती थी और मिट्टी के दीपक जलाये जातें थे लेकिन आज मंहगाई की मार के चलते जनता मिट्टी के दीपक-बाती के स्थान पर रंग बिरंगी लाइटें लगाते हैं और आकर्षक रोशनी करते है ।
आज त्यौहार त्यौहार न रहकर मात्र एक औपचारिकता मात्र रह गयी है । आज पत्र पत्रिकाओ में दीपावली पर आलेख व कविताएं कम प्रकाशित हो रहीं है और दीपावली विशेषांक के नाम पर उनमें केवल विज्ञापनों की भरमार होती है या फिर नेट पर से उठाकर कोई भी लेख लगाकर इतिश्री की जा रहीं है चूंकि पत्र पत्रिकाओ के सम्पादकीय कार्यालयों में डेक्स पर बैठने वाला न तो साहित्य प्रेमी हैं और न लिखने वाले लोग हैं जो पुराने लेखक व साहित्य प्रेमी है उन्हें आज के युवा पत्रकार हेय दृष्टि से देखते हैं । यहीं वजह है कि आज तीज-त्यौहारों के बारें में जनता-जनार्दन को सही जानकारी नहीं है
दीपावली पर भगवान रामचन्द्र जी 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटें थे । उसी खुशी में दीपावली मनाई जाती है लेकिन दीपावली पर आज लोग रामचंद्र जी को भूलकर केवल लक्ष्मी जी का ही पूजन कर सुख शान्ति व समृध्दि की कामना करतें है । यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का दिन हैं । यह प्रेम , स्नेह , ममता व भाईचारा बढाने का दिन हैं । दीपावली सभी के जीवन में खुशियां लायें और कोरोना जैसी महामारी का नाश करें ।
कडवाहट , कटुता, आपसी मनमुटाव व राग द्वेष को भूलाकर हम नयें संकल्पों के साथ जीवन की शुरुआत करें व प्रेम का दीपक जलाएं । मिठाई की मिठास की तरह सबके मन में मिठास आयें और एक – दूसरे के साथ स्नेह बढायें । ज्योत से ज्योत जलाते चलो और प्रेम की गंगा बहाते चलों । आपके मन में प्रेम इतना गहरा हो कि लोग आश्चर्य करें कि अमावस्या की इस रात में चांद कहां से निकल आया अर्थात लोग यकायक मनमुटाव भूलकर एक – दूसरे के हितैषी कैसे बन गयें ।
इस बात का ध्यान रखें कि दीपक बिना पूजा शुरू नहीं होती और न ही पूरी होती हैं । अतः धनतेरस से दीपावली पर दीपक अवश्य ही लगायें । दीपक को कभी भी कोरे जमीन पर न रखें अपितु चावल पर रखें चूंकि चावल दीपक का आसन हैं । जहां दीपक जलता हैं वहां प्रसन्नता रहती है । दरिद्रता और बीमारियां दूर होती है । अतः दिये अवश्य जलाये चूंकि इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है व सुख शान्ति व समृध्दि बनी रहतीं है । पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं । घर में बरकत बनी रहतीं है । संतान सुख की प्राप्ति होती है । मां लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है एवं धन की वर्षा होती है ।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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