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साहित्य लहर

कविता : आस्तीन का सांप

कविता : आस्तीन का सांप… वह बहुत अच्छा है तुमसे, तुमने तो मनुष्य होकर भी विषधरों को मात दे दी अपनापन जता कर डंसते रहे आस्तीन के सांप की तरह तुमने तनिक भी नहीं सोचा तुम सांप नहीं…  #डा उषाकिरण श्रीवास्तव, वसुंधरा, मुजफ्फरपुर, बिहार

मेरे दोस्त
सांप को मैंने पाला है
अपनी अंध विश्वासी प्रवृत्ति के कारण
उसे दूध लावा भी चढ़ाया है
यह जानते हुए भी
कि वह विषधर है

लेकिन नहीं !
आज तक उसने झपटा तक नहीं
वह बहुत अच्छा है तुमसे,
तुमने तो

मनुष्य होकर भी
विषधरों को मात दे दी
अपनापन जता कर डंसते रहे
आस्तीन के सांप की तरह

तुमने तनिक भी नहीं सोचा
तुम सांप नहीं
आदमी हो
काश! तुम सांप होते।

मानवीय जीवन का सुरक्षा कवच है यज्ञोपवीत


कविता : आस्तीन का सांप... वह बहुत अच्छा है तुमसे, तुमने तो मनुष्य होकर भी विषधरों को मात दे दी अपनापन जता कर डंसते रहे आस्तीन के सांप की तरह तुमने तनिक भी नहीं सोचा तुम सांप नहीं...  #डा उषाकिरण श्रीवास्तव, वसुंधरा, मुजफ्फरपुर, बिहार

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