अरवल जिले की सांस्कृतिक विरासत
अरवल जिले की सांस्कृतिक विरासत… मझियवां के किसान आंदोलन के प्रथम प्रणेता पंडित यदुनंदन शर्मा थे। राजा हर्षवर्धन ने 606 ई. में बाण भट्ट दरवारी कवि थे जिन्होंने कादंबरी एवं हर्ष चरित लिखा था। उस समय हर्षवर्धन के शासन काल में भगवान् शिव एवम् भगवान् सूर्य प्रमुख देव की उपासना पर सक्रियता थी। #सत्येन्द्र कुमार पाठक
भाषा और साहित्य का निर्माण एवं जनहित के नियमित व्यापक स्तर पर लाने वाले साहित्यिक लेखन राष्ट्रीय अभ्युथान की प्रगति मूलक चेतना साहित्यकार है। प्रारम्भ में हर्षवर्द्धन शासन काल में अरवल जिले के क्षेत्रों में संस्कृत साहित्य के गद्य रचनाकार वाण भट्ट, 1844 ई. का डिंगल भाषा के बासताड़ के निवासी ज्ञाता पंडित कमलेश की कमलेश विलास अरवल जिले में प्रसिद्ध है। सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने 1894 – 1923 ई. तक भारतीय भाषाओं और बोलियों का सर्वेक्षण के तहत बिहारी वर्ग की प्रमुख भाषा मगही का स्थान दिया था।बेलखर के निवासी गंगा महाराज, 1945 ई. से 1973 ई. तक डॉ. रामप्रसाद सिंह, आकोपुर के रामनरेश वर्मा, बासताड़ के श्रीमोहन मिश्र द्वारा संस्कृत और मगही का विकास किया वही फखरपुर के देवदत्त मिश्र और तारादत्त मिश्र द्वारा संस्कृत भाषा मे रचना कर श्री कृष्ण की भक्ति भावना के प्रति समर्पित किया था।
अरवल जिले की भाषा मगही और हिंदी है। भारतीय और मागधीय संस्कृति एवं सभ्यताएं प्राचीन काल से अरवल जिले के करपी का जगदम्बा मंदिर में स्थापित माता जगदम्बा, शिव लिंग, चतुर्भुज भगवान, भगवान शिव – पार्वती विहार की मूर्तियां महाभारत कालीन है। कारूष प्रदेश के राजा करूष ने कारूषी नगर की स्थापित किया था। वे शाक्त धर्म के अनुयायी थे। हिरण्यबाहू नदी के किनारे कालपी में शाक्त धर्म के अनुयायी ने जादू-टोना तथा माता जगदम्बा, शिव – पार्वती विहार, शिव लिंग, चतुर्भुज, आदि देवताओं की अराधना के लिए केंद्र स्थली बनाया। दिव्य ज्ञान योगनी कुरंगी ने तंत्र – मंत्र – यंत्र, जादू-टोना की उपासाना करती थी। यहां चारो दिशाओं में मठ कायम था, कलान्तर इसके नाम मठिया के नाम से प्रसिद्ध है।
करपी गढ की उत्खनन के दौरान मिले प्राचीन काल में स्थापित अनेक प्रकार की मूर्ति जिसे उत्खनन विभाग ने करपी वासियों को समर्पित कर दिया। प्राचीन काल में प्रकृति आपदा के कारण शाक्त धर्म की मूर्तियां भूगर्भ में समाहित हो गई थी। गढ़ की उत्खनन के दौरान मिले प्राचीन काल का मूर्तिया।विभिन्न काल के राजाओं ने करपी के लिए 05 कूपों का निर्माण, तलाव का निर्माण कराया था। साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की प्रचीन परम्पराओं में शाक्त धर्म एवं सौर, शैव धर्म, वैष्णव धर्म, ब्राह्मण धर्म, भागवत धर्म का करपी का जगदम्बा स्थान है। करपी जगदम्बा स्थान की चर्चा मगधांचल में महत्व पूर्ण रूप से की गई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की स्थापना 1861 ई. में हुई है के बाद पुरातात्विक उत्खनन सर्वेक्षण के दौरान करपी गढ के भूगर्भ में समाहित हो गई मूर्तिया को भूगर्भ से निकाल दिया गया था।
करपी का सती स्थान, ब्रह्म स्थली प्राचीन धरोहर है। करपी का नाम कारूषी, कुरंगी, करखी, कुरखी, कालपी था।अरवल जिला का सांस्कृतिक दर्शन में अरवल जिले का क्षेत्र महत्वपूर्ण है। अरवल जिला स्थापना दिवस 20 अगस्त 20 11 के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका 2011, थॉर्नटोन्स गज़ेटियर, वॉल्यूम 1 1854, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट गया डॉ . ग्रियर्सन का रिपोर्ट 1888, ओ मॉली द्वारा द्वारा 1906 में प्रकाशित डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ऑफ गया तथा प. कि. राय चौधरी स्पेशल ऑफिसर गजेटियर रेविशन सेक्शन, रेवेन्यू डिपार्टमेंट, बिहार, पटना द्वारा प्रकाशित बिहार डिस्ट्रिक्ट गैज़ेटर्स गया 1957 में अरवल जिले के प्राचीन धरोहरों, स्थलों और विकास की महत्वपूर्ण चर्चा की गई है। भारतीय संस्कृति एवं विरासत सभ्यता अरवल जिले के 637 वर्ग कि. मी. क्षेत्रफ़ल में फैली हुई है।
अरवल जिले का क्षेत्र 25:00 से 25:15 उतरी अकांक्ष एवं 84:70 से 85:15 पूर्वी देशांतर पर अवस्थित हैं।20 अगस्त 2001 में समुद्रतल से 115 मीटर की ऊंचाई तथा पटना से 65 कि. मी. की दूरी एवं जहानाबाद से 35 कि. मि. पश्चिम अरवल जिले का दर्जा प्राप्त है। मगही और हिंदी भाषी अरवल जिले में 05 प्रखण्ड,316 राजस्व गांव में 18 बेचिरागी गांव, 65 पंचायत, में 648994 ग्रामीण आबादी एवं 51859 आवादी 118222 मकानों में निवास करते हैं। करपी, अरवल, कुर्था, कलेर तथा सोनभद्र बंशिसुर्यपुर प्रखण्ड में 11 थाने के लोग 33082.83 हेक्टयर सिंचित भूमि,845.10 हेक्टयर बंजर भूमि तथा कृषि योग भूमि 49520.40 हेक्टयर में कृषि कार्य करते हैं तथा अरवल और कूर्था विधान सभा में 21 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र,21 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा सदर अस्पताल है।
अरवल जिले की साक्षरता 56.85 प्रतिशत है। यहां की प्रमुख नदियां सोन नद और पुनपुन नदी और वैदिक नदी हिरण्यबाहू नदी का अवशेष (बह) है। पर्यटन के दृष्टिकोण से प्राचीन विरासत शाक्त धर्म का स्थल करपी का जगदम्बा स्थान मंदिर में महाभारत कालीन मूर्तियां में माता जगदम्बा, चतुर्भुज, शिवपार्वती विहार, अनेक शिव लिंग मूर्तियां, मदसरवा (मधुश्रवा) में ऋषि च्यवन द्वारा स्थापित च्यवनेश्चर शिवलिंग, वधुश्रवा ऋषि द्वारा वधुसरोवर, पंतित पुनपुन नदी के तट पर कुरुवंशियों के पांडव द्वारा स्थापित शिव लिंग, किंजर के पुनपुन नदी के पूर्वी तट पर स्थित शिवलिंग एवं मंदिर, सोनभद्र वंशी सूर्यपुर प्रखंड के खटाँगी का सूर्यमंदिर के गृभगृह में सौर सम्प्रदाय का द्वापरकालीन भगवान सूर्य की मूर्ति लारी का शिवलिंग, सती स्थान, गढ़, नादि का शिवलिंग, तेरा का सहत्रलिंगी शिवलिंग, रामपुर चाय का पंचलिगी शिव लिंग, सचई का गढ़, लारी गढ़, नादी गढ़, कोचहास में रखी मूर्तियां, कागजी महल्ला में शिवमन्दिर में पाल कालीन शिव लिंग तथा अरवल के गरीबा स्थान मंदिर में शिवलिंग प्राचीन काल की है.
वहीं अरवल का सोन नद और सोन नहर के मध्य सोन नद के किनारे 695 हिजरी संवत में आफगिHस्तान के कंतुर निवासी भ्रमणकारी सूफी संत शमसुद्दीन अहमद उर्फ शाह सुफैद सम्मन पिया अर्वली का मजार सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है। प्राचीन काल में सोन प्रदेश का राजा शर्याती, कारूष प्रदेश का राजा करूष, आलवी प्रदेश का राजा हैहय आलवी यक्ष , ऋषियों में च्यवन, वधुश्रवा, मधुश्रवा, मधुक्षंदा, उर्वेला, नादी, वत्स का कर्म एवं जन्म भूमि रहा है। अरवल जिले का हिंदी एवं मगही भाषीय क्षेत्र सनातन धर्म का शैवधर्म, शाक्त धर्म, सौर धर्म एवं वैष्णव धर्म की परंपरा कायम हुई तथा शैवधर्म में भगवान् शिव की पूजा एवं आराधना के लिए शिवमन्दिर के गर्भ गृह में शिव लिंग की स्थापना की गई। 16 वें द्वापर युग में ऋषि च्यवन 22 वें द्वापर युग में मधु, 24वें द्वापर युग में यक्ष का शासन था वहीं वधुश्रवा, दाधीच, मधूछंदा ऋषि, सारस्वत, वत्स ऋषि का कर्म स्थल था।
दैत्य राज पुलोमा ने अपने नाम पर पुलोम राजधानी की स्थापना कर भगवान् शिव लिंग की स्थापना की थी।बाद में पूलोम स्थल को पुंदिल, पोंदिल वर्तमान में बड़कागांव कहा जाता हैं। 16 जनवरी 1913 ई. में जन्मे फखरपुर का पंडित महिपाल मिश्रा की भार्या अधिकारिणी देवी के गर्भ से चक्रधर मिश्र ने राधा बाबा के रूप में विश्व को आध्यात्म की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरणा दी। खाभैनी के जीवधर सिह ने 1857 ई. में आजादी की प्रथम लड़ाई में महत्वपूर्ण कार्य किया है। मझियवां के किसान आंदोलन के प्रथम प्रणेता पंडित यदुनंदन शर्मा थे। राजा हर्षवर्धन ने 606 ई. में बाण भट्ट दरवारी कवि थे जिन्होंने कादंबरी एवं हर्ष चरित लिखा था। उस समय हर्षवर्धन के शासन काल में भगवान् शिव एवम् भगवान् सूर्य प्रमुख देव की उपासना पर सक्रियता थी।
हर्ष के 643 ई. में चीनी यात्री हुएनसांग आकर मगध की चर्चा की है। अरवल में 1840 ई को इंडिगो फैक्ट्रीज की स्थापना सलॉनो तथा स्पेनिश परिवार ने की थी। सोलॉनो परिवार के डॉन रांफैल सोलॉनों ने अरवल में इंडिगो फैक्ट्रीज का मुख्यालय बनाया था। सोन नद के पूर्वी तट पर स्थित अरवल में 1840 ई. में स्थापित डॉन राफेल सलोनो का इंडिगो फैक्ट्री, स्पेनिश द्वारा स्पेनिश ट्रेडर, ग्रेन गोल्स,फ्लौर और आयल मिल्स थी। 1906 ई. में कुर्था और अरवल थाने, 1784 ई. में अरवल परगना, 1860 ई. में बेलखरा महाल की इस्टेट रानी बरती बेगम के निधन के बाद टिकरी इस्टेट में शामिल किया गया था। रेवेन्यू थाना अरवल में 249 गाँव 1918 ई. में शामिल थे।बेलखरा ट्रस्ट इस्टेट का जमींदार श्री मती महारानी कुमारी उमेश्वरी देवी थी।
1906 ई. में अरवल यूनियन बोर्ड का गठन कर 46 वर्गमील के 180 गाँव को शामिल कर सुरक्षा, विकास प्रारम्भ किया गया था। अरवल में गांधी पुस्तकालय 1934 ई. से स्थापित है। करपी में पंडित नेहरू पुस्तकालय जीर्ण। सिर्ण है। पत्रकारिता के क्षेत्र में मझियावां के किसान नेता पंडित यदुनंदन शर्मा द्वारा चिंगारी और लंकादहन प्रकाशित कर आजादी का शंखनाद किया था। करपी के सत्येन्द्र कुमार पाठक के द्वारा 1981 में मगध ज्योति हिंदी साप्ताहिक पत्र का प्रारंभ किया गया। पर्यटन के क्षेत्र में करपी का जगदम्बा स्थान, सती स्थान, मदसर्वां का च्यावनेश्वर मंदिर, पन्तित का सूर्य मंदिर, शिव मंदिर, किजर का शिवमंदिर, लारी का शिव मंदिर, सती स्थान, खटांगी का सूर्य मंदिर आदि है। अरवल जिले के नदियों में सोन नद, पुनपुन नदी और वैदिक नदी हिरण्यबाहु ( बह ) प्रविहित है।