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साहित्य लहर

कविता : आस्तीन के सांप

कविता : आस्तीन के सांप, हम आंख बंद कर विश्वास करते रहे, वे नफरत के खंजर पीठ पीछे घोंपते रहे, हम उन्हें इज्जत के इत्र से नहलाते रहे, वे मुंह पर हमारे कालिख मलते रहे, हम उनकी हर गलती को नजरअंदाज करते रहे. #मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

हम उनकी हर गलती को नजरअंदाज करते रहे
वे नफरत के खंजर पीठ पीछे घोंपते रहे

हम मासूम से समझ उन्हें हर क्षण माफ करते रहे
वे इसे हमारी कमजोरी समझ, चाल पर चाल चलते रहे

हम उनकी हर अच्छी- बुरी बात मानते रहे
वे हमारे घावों पर नमक लगाते रहे

हम आंख बंद कर विश्वास करते रहे
वे नफरत के खंजर पीठ पीछे घोंपते रहे

हम उन्हें इज्जत के इत्र से नहलाते रहे
वे मुंह पर हमारे कालिख मलते रहे



हम उनकी हर गलती को नजरअंदाज करते रहे
वे आस्तीन के सांप- हम दूध पिलाते रहे, वे डसते रहे


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कविता : आस्तीन के सांप, हम आंख बंद कर विश्वास करते रहे, वे नफरत के खंजर पीठ पीछे घोंपते रहे, हम उन्हें इज्जत के इत्र से नहलाते रहे, वे मुंह पर हमारे कालिख मलते रहे, हम उनकी हर गलती को नजरअंदाज करते रहे. #मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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