सोशल मीडिया में निकलती मन की भड़ास
सोशल मीडिया में निकलती मन की भड़ास, यूट्यूब में भी कुछ यूट्यूबर अपने व्यूज बढ़ाने की दौड़ में अनावश्यक सामग्री परोसते हैं जिसे देखने से हरेक परहेज करता है। ‘सोशल मीडिया’ का असल मतलब सुविचारों से समाज को जोड़ना होता है। #ओम प्रकाश उनियाल
सोशल मीडिया की सटीक परिभाषा बेशक बहुत कम लोगों को पता हो मगर इसके उपयोगकर्ताओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसकी बदौलत आज हर कोई हर विषय का ज्ञानी बन चुका है। एंडरॉयड, आई फोन, टेबलेट, कम्प्यूटर, लैपटॉप का उपयोग करने वाले सोशल मीडिया से ज्यादा प्रभावित हैं। सोशल मीडिया के तहत फेसबुक, ह्वाट्सएप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि एप्लिकेशन आते हैं।
फेसबुक आज के दौर में सबसे आगे है। सोशल मीडिया से कई ऐसी जानकारियां व खबरें मिलती हैं जो बहुत ही लाभकारी होती हैं। मगर कई लोग अनाप-शनाप, अश्लील व फेक झूठी सामग्री, तस्वीरें, वीडियो डालते हैं जिनसे समाज में गलत संदेश पहुंचता है या किसी के मन को ठेस पहुंचती है। फेसबुक में यह अधिक देखने को मिलता है। खासतौर पर अफवाहें।
ह्वाट्सएप पर तो ‘गुड मॉर्निंग’, ‘गुड नाइट’ संदेशों की होड़ चलती ही रहती है। इसके अलावा डीपी पर अपने तरह-तरह के पोज की तसवीरें व वीडियो, विभिन्न प्रकार के मन की भड़ास निकालने वाले एवं एक-दूसरे पर कटाक्ष करने वाले उद्धरण (कोट्स) डाले जाते हैं जो कि बहुत ही अटपटे लगते हैं एवं भेजने वाले की सोच दर्शाते हैं। कुछ तो इसे अपना शौक बताते हैं।
शौक करना अच्छी बात है उसका क्या प्रभाव किस पर पड़ रहा है यह भी सोचना जरूरी है। यूट्यूब में भी कुछ यूट्यूबर अपने व्यूज बढ़ाने की दौड़ में अनावश्यक सामग्री परोसते हैं जिसे देखने से हरेक परहेज करता है। ‘सोशल मीडिया’ का असल मतलब सुविचारों से समाज को जोड़ना होता है।
सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों से असंख्य लोग जुड़े होते हैं। सामाजिक संचार का मूल उद्देश्य लोगों में जागरूकता लाना होता है। यदि आप भी सोशल मीडिया से जुड़े हैं तो स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए स्वयं में नयी क्रांति जगाने का प्रयास करें। एक-दूसरे पर लांछन, आरोप-प्रत्यारोप लगाकर मन की भड़ास निकालने व दुरुपयोग करने से बचें। राष्ट्रहित के लिए भी यह जरूरी है।
पत्रकारिता का स्वरुप बिगाड़ रहे हैं तथाकथित डिजिटल समाचार चैनल
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