दुख का मूल कारण अंहकार और क्रोध
दुख का मूल कारण अंहकार और क्रोध… वह दयावान लोगों की वजह से ही कायम है। चूंकि दयावान लोगों के मन में किसी भी प्रकार के लोभ को पाने की भावना नहीं होती हैं। वो जो कुछ भी कर रहे हैं वह निस्वार्थ भाव से कर रहें हैं… ✍️ सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
अरे भाई ! किसी के बारे में सोचों तो सदैव अच्छा ही सोचों बुरा क्यों। चूंकि नकारात्मक सोच सदैव हमारी प्रगति में बाधक ही बनती हैं। इसलिए सदैव सकारात्मक सोच के साथ आगें बढें। आज इंसान – इंसान का दुश्मन बना हुआ हैं चूंकि उसमे आदर्श संस्कारों का नितांत अभाव है। आज हर कोई अपने अंहकार, क्रोध व घमंड में मर रहा है।
नम्रता विनम्रता, प्रेम, दया, वात्सल्य का लोगों में अभाव हैं। दुख का मूल कारण ही अंहकार और क्रोध हैं। जब व्यक्ति अंहकार में होता हैं और क्रोध आता है तब उसकी बुध्दि नष्ट हो जाती है और एक दिन ऐसा भी आता हैं कि वह अपने ही हाथों अपना नुकसान कर बैठता हैं। आज हमें देश में भाईचारे की जो भावना दिखाई दे रही हैं।
वह दयावान लोगों की वजह से ही कायम है। चूंकि दयावान लोगों के मन में किसी भी प्रकार के लोभ को पाने की भावना नहीं होती हैं। वो जो कुछ भी कर रहे हैं वह निस्वार्थ भाव से कर रहें हैं और उन्हीं के प्रताप से इस धरती पर थोडी बहुत दया का भाव बना हुआ हैं।
अगर हम हर रोज कुतों को रोटी दे। गायों को चारा दें। किडीनगरा सींचे, मंदिर में पूजा पाठ करें तो देश में सर्वत्र परोपकार का भाव देखने को मिल सकता है बस हमें अपनी नकारात्मक सोच को बदलना होगा। मानव कल्याण व जीवदया से ही समाज व राष्ट्र का उत्थान संभव हैं। जहां दया का भाव होता है वही तो अमनचैन, शांति कायम रह सकती हैं और जहां ऐसा वातावरण हो वही सही मायने में स्वर्ग है।
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