पशुधन तथा प्रकृति प्रेम का प्रतीक गोवर्धन पूजा
भुवन बिष्ट
रानीखेत। भारतभूमि अपनी एकता अखण्डता के लिए सदैव ही विश्वविख्यात रही है और सर्वधर्म का हमारा प्यारा राष्ट्र सभी त्यौहारों उत्सवों को सदैव ही भाईचारे आपसी मेलमिलाप के साथ मनाने के लिए विश्व में जाना जाता है। देवभूमि उत्तराखंड देवों की तपोभूमि के नाम से जानी जाती है वहीं इसकी पावन परंपराऐं हमें बहुत कुछ प्रेरणा प्रदान करती हैं।
भारतभूमि व देवभूमि उत्तराखण्ड जहां होता है आस्था का अटूट संगम व जहां अपनी सुंदर रंग बिखेरती हैं सदैव यहां की पावन परंपराऐं। संस्कृति, सभ्यता व ऐसी ही परंपराओं को संजोने का काम सदैव से ही करते आये हैं देवभूमि उत्तराखण्ड व पावन भारतभूमि के गाँव। दीपावली में गोवर्धन पूजा का भी विशेष महत्व है जो प्रकृति प्रेम पशुधन के प्रतिक के रूप में जाना है। गोवर्धन पूजा पर गौ धन पशुधन की पूजा अर्चना की जाती है। गोवर्द्धन पूजा को समाज में समानता का प्रतिक माना जाता है ।
इस अवसर पर लोगों द्वारा गौ माता की पूजा अर्चना करके सुख समृद्धि की कामना की जाती है। देखा जाय तो हमारी समृद्धि खुशहाली में पशुधन का भी विशेष महत्व है और कृषि और पशुधन और मानव का सदैव ही अटूट संबंध रहा है। गोवर्द्धन पूजा के दिन ही भगवान कृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए गोवर्द्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया था और इंद्र के क्रोध से सभी ग्रामीणों की रक्षा की थी,और इंद्र का अंहकार चूर चूर कर दिया था। देवभूमि उत्तराखंड हो या हमारी भारतभूमि परंपराओं का संगम सदैव ही गांवों में देखने को मिलता है।
गोवर्धन पूजा पर गांवों में गोबर से पर्वत बनाकर कुलदेवता की पूजा अर्चना की जाती है। विभिन्न पकवान तैयार किये जाते हैं । गोवर्द्धन पूजा के अवसर पर गौ माता के पांव धोकर उन्हें टीका लगाने के बाद फूलो की माला भी पहनाई जाती है। देवभूमि की गांवों की परंपरा के अनुसार बिस्वार घोल कर गाय की पीठ पर हाथ के पंजो और माणे (माप की घरेलू ईकाई जिससे की अनाज का लेन देन किया जाता है ) से छाप लगाई जाती है । गौशाले में ही गाय के गोबर से गोवर्द्धन पवर्त बनाकर गाय और इसकी पूजा की जाती है।
सुबह से ही कुलदेवता की पूजा की जाती है, विभिन्न पकवान तैयार किये जाते हैं इस अवसर पर गौ संरक्षण का संकल्प भी लिया जाता है । ये परंपराऐं बड़ी ही आस्था व धूमधाम से गांवो में मनाई जाती हैं । आज आधुनिकता की चकाचौंध हो या रोजगार या कर्मभूमि के रूप में भले ही पलायन निरन्तर जारी हो या पलायन से अनेक गाँव खाली हो चुके हों। किन्तु आज भी हर त्यौहार पर गांवों से पलायन कर चुके लोग इन परंपराओं के लिए अपने- अपने गांवों अपनी जन्मभूमि, अपनी मातृभूमि का रूख करते हैं और सभी मिलकर जीवंत रखते हैं महान परंपराऐं। त्यौहारों व परंपराओं ने हम सभी को प्रकृति प्रेम,एकता, अखण्डता, पशु – पक्षी प्रेम, वनों, नदियों, नौलों पारंपरिक जलस्रोतों आदि अनेक प्रेरणादायक कार्यों से भी सदैव जोड़ा है।
दीपावली में गोवर्धन पूजा का भी विशेष महत्व है जो प्रकृति प्रेम पशुधन के प्रतिक के रूप में जाना है। गोवर्धन पूजा पर गौ धन पशुधन की पूजा अर्चना की जाती है। गोवर्द्धन पूजा को समाज में समानता का प्रतिक माना जाता है । इस अवसर पर लोगों द्वारा गौ माता की पूजा अर्चना करके सुख समृद्धि की कामना की जाती है। देखा जाय तो हमारी समृद्धि खुशहाली में पशुधन का भी विशेष महत्व है और कृषि व पशुधन और मानव का सदैव ही अटूट संबंध रहा है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »भुवन बिष्टलेखक एवं कविAddress »रानीखेत (उत्तराखंड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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