गिरता रुपैया…!
नवाब मंजूर
दिन ब दिन कमजोर होता जा रहा है, रूपैया
जाने जाकर कहां रूकेगा, रूपैया ?
पहले गिरते रुपए का अर्थशास्त्र-
समझाते थे भैया-
बढ़ेगी महंगाई, बेरोजगारी;
हर चीज की होगी किल्लत भारी!
संकट अर्थव्यवस्था पर आएगा गहरा,
थामो जल्दी इसको,लगाओ कोई पहरा;
सरकार कैसी?
जो सुने ना जनता की-
मानो हो गूंगा बहरा!
न जाने क्या-क्या और भी बहुत कुछ
कह जाते थे भैया!
सिर पीट लेता था
गुस्से से आंखें-
हो जातीं थी लाल।
दैया रे दैया!
क्या भाषण देते थे कमाल?
झट समझ लेता था-
अबकी क्या करना है?
उनका,
जिन्होंने किया है रुपए का यह हाल!
लेकिन अब तो भैया भी-
गुमसुम से पड़े हैं
बहुत कुरेदो तो भी-
नहीं कुछ भी बोले हैं!
टीवी पर भी पसरा है सन्नाटा खूब
एंकर नहीं दिखा रहे हैं अपनी उछल-कूद!
मानो अब गिरता रुपैया कोई मसला नहीं है?
कन्फ्यूज हो गया हूं
क्या पहले का कंसेप्ट ठीक था?
या अबकी शांति सही है!
रुपए के गिरने पर भी
अर्थव्यवस्था,पांचवीं पर आ टिकी है!
भैया म्हारो तो कुछ समझ नहीं आवो हो
मामला है गंभीर या
नया है कोई सीन?
कुछ तो है जिसे छुपाया जा रहा है?
वरना आखिर क्यों रुपया-
झूम झूम कर गोते लगा रहा है!
कमाओ कितना भी?
झट खत्म हो जा रहा है
आम आदमी बस आंसू बहा रहा है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »मो. मंजूर आलम ‘नवाब मंजूरलेखक एवं कविAddress »सलेमपुर, छपरा (बिहार)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
---|