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साहित्य लहर

लफंगो को दु:ख न हो

अशोक शर्मा

नैतिक पतन के दौर में, धावक बने हो श्रेष्ठ तुम।
पुरस्कृत करना है हमें, भ्राता बने हो ज्येष्ठ तुम।।

हम कर रहे आजादी का, उपयोग जी भर कर अभी।
फिर वक्त मिले न मिले, पछताना पड़े न फिर कभी।।

हम स्वयं साधन सुविधा, बुद्धि के बल पर हैंं बढ़े।
ऊपर नीचे को खुश कर, देख आज हम हैं शीर्ष चढ़े।।

तुम भी आओ गर साथ चाहे, नैतिकता की न बात रहे।
तो तुरंत बुलंदी से आओ मिलकर सुख सुविधा सब पाओ।।

अब पाना है सत्ता का सुख, लक्ष्य है लफंगो को हो न दु:ख।
बस साथ हमें देना “विवेक”, जिससे सदैव हमें मिले सुख।।

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