कविता : एक सच्चाई

एक सच्चाई, कितना भी बलशाली क्यों न हो वह? या पुत्र किसी बाप का! आगे अपनी सोचो करने का क्या इरादा है? चलोगे धर्म के मार्ग पर या कंस सरीखे हो जाओगे? नवाब मंजूर की कलम से…

सत्य से जो दूर है
वही मद में चूर है
लोभ भी भरपूर है
इसी भ्रम में मानता स्वयं को,
वही एक शूर वीर है।
रौंदता जाता सबको
जाने रब ही खुद को
न छोड़े नि:सहायों अबलाओं को
ना ही छोड़े मासूम बच्चों को!
ऐसा वह कपूत है…

मद किसी का नहीं रहता
रावण का भी नहीं रहा
रामायण इसका सबूत है!
अहंकारी व्याभिचारी अत्याचारी
लोगों के लिए ही ईश्वर!
धरा पर लेते हैं अवतार

पापियों का समूल नाश कर
वसुंधरा का करते उद्धार!
देते समाज को सुंदर संदेश
महाभारत में ईश्वर केशव के भेष।
गीता का संदेश सुनाया
जब जब पाप से कराही धरती
अवतार ले मैं आया!

अधर्म की कभी विजय नहीं होती,
ना होगी..
जब जब पृथ्वी पर
बढ़ेगा अन्याय
अत्याचार!
प्रकट हो स्वयं करूंगा
नाश पाप का,
कितना भी बलशाली क्यों न हो वह?
या पुत्र किसी बाप का!

आगे अपनी सोचो
करने का क्या इरादा है?
चलोगे धर्म के मार्ग पर
या कंस सरीखे हो जाओगे?
चुनना तुमको है…
चाहते हो जय-जयकार
या रावण की सी हार?

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